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अष्टक-२४
यद्यपि मोक्ष-मार्ग की स्वभावतः अनुसरणशीलता एक मन में प्रारंभ से ही रहती है लेकिन ज्ञानवृद्ध व्यक्तियों के प्रताप से वह अभिव्यक्त होती है तथा उत्कृष्ट वृद्धि प्राप्त करती है ।
दया भूतेषु वैराग्यं विधिवद् गुरुपूजनम् ।
विशुद्धा शीलवृत्तिश्च पुण्यं पुण्यानुबंध्यदः ॥८॥
प्राणियों के प्रति दया, वैराग्य, गुरुजनों का विधिवत् पूजन, विशुद्ध सदाचरण (अर्थात् निरपवाद रूप से अहिंसा, सत्य आदि का पालन)-ये हैं वे पुण्य कार्य जो पुण्य कार्य को जन्म देते हैं ।
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