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________________ ७८ (टिप्पणी) आचार्य हरिभद्र के कहने का आशय यह हुआ कि प्रस्तुत व्यक्ति बार बार उत्कृष्ट योनियों में जन्म पाता है तथा उसके सभी जीवन-पहलू उत्कृष्टताशाली होते हैं । 'हितोदयाम्' इस शब्द का अर्थ टीकाकार के अनुसरण पर किया गया है । तत्तथा शोभनं दृष्ट्वा साधु शासनमित्यदः । प्रपद्यन्ते तदैवैके बीजमन्येऽस्य शोभनम् ॥४॥ * २ शास्त्र - प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाले उसके इस शोभन क्रिया-कलाप को देखकर और ( फलतः ) 'यह शास्त्र श्रेष्ठ है' इस प्रकार की समझ बनाकर कुछ व्यक्ति तत्काल सम्यक्त्व की प्राप्ति करते हैं तथा कुछ लोग सम्यक्त्व के शोभन (अर्थात् अवंध्य) बीज की । अष्टक - २३ (टिप्पणी) 'सम्यक्त्व की प्राप्ति' तथा 'सम्यक्त्व के अवंध्य बीज की प्राप्ति' के बीच संबंध वही है जो हम सामान्य जीवन में 'फल की प्राप्ति' तथा फल के अवंध्य बीज की प्राप्ति' के बीच पाते हैं । सामान्येनापि नियमाद् वर्णवादोऽत्र शासने । कालान्तरेण सम्यक्त्वहेतुतां प्रतिपद्यते ॥५॥ २ सामान्य रूप से भी इस शास्त्र की प्रशंसा किया जाना ( अर्थात् इस रूप से कि यह शास्त्र भी शोभन है—न कि इस रूप से कि यह शास्त्र ही शोभन है ) कालान्तर में सम्यक्त्व - प्राप्ति का कारण बनता है । (टिप्पणी) यह वर्णन हुआ उस व्यक्ति का जो शास्त्र - प्रशंसा के फलस्वरूप सम्यक्त्व के अवंध्य बीज की प्राप्ति करता है । चौरोदाहरणादेवं प्रतिपत्तव्यमित्यदः । कौशाम्ब्यां स वणिग् भूत्वा बुद्ध एकोऽपरो न तु ॥६॥ २ यह बात उन दो चोरों के उदाहरण से समझनी चाहिए जिनमें से एकने कौशाम्बी में वणिक् रूप से जन्म पाकर बोधि ( = सद्बुद्धि ) प्राप्त की तथा दूसरे ने नहीं । (टिप्पणी) कथा कहती है कि एक अवसर पर इन दो चोरों में से एक ने एक तपस्वी की तपस्या की प्रशंसा की थी तथा दूसरे ने उस तपस्वी ★ क्रमांक ४ से ८ तक की कारिकाओं का दूसरा पाठ यहाँ प्रारंभ होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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