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________________ जिनचन्द्रसूरि वा० क्षेमकीर्ति (क्षेमशाखा प्रवर्तक) . जिनोदयसूरि वा० क्षेमहंस (काव्यत्रयी के टीकाकार) सोमध्वज जिनराजसूरि वा०क्षेमध्वज जिनभद्रसूरि (जेसलमेर ज्ञानभंडार के संस्थापक) जिनचन्द्रसूरि वा० क्षेमराज गणि भावराज जिनस र उ० शिवसुन्दर उ० कनकतिलक उ० दयातिलक उ० प्रमोदमाणिक्य जिनहंससूरि गुणरंग दयारंग उ० जयसोम क्षेमसोम जिनमाणिक्यसूरि पुण्यतिलक यु० जिनचन्द्रसूरि विजयतिलक विद्याकीर्ति जिनसिंहसूरि उ० गुणविनय विजयतिलक पुण्यात का ही उल्लेख किया है अपितु सर्वत्र गुणगान-यशोगान किया है, जिसका कारण है कि इनकी दीक्षा, पद-प्राप्ति आदि ही नहीं अपितु आचार्यश्री के सान्निध्य/नैकट्य में रहने का भी इन्हें अत्यधिक अवसर प्राप्त हुआ है, अत: यह आवश्यक है कि इनका परिचय देने के पूर्व युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि का विहंगम दृष्टि से परिचय दिया जाय। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि जिनचन्द्रसूरि श्रीजिनमाणिक्यसूरि के शिष्य हैं। इनके माता-पिता वीसा ओसवाल श्रीवंत और सिरियादे खेतसर (मारवाड़) के निवासी थे। इनका जन्म वि०सं० १५९५ में हुआ था और इनका बाल्यावस्था का नाम था सुलतान। आचार्य श्रीजिनमाणिक्यसूरि के उपदेश से प्रभावित होकर ९ वर्ष की अल्पावस्था में इन्होंने सं० १६०४ में दीक्षा ग्रहण की और उस समय इनका दीक्षा नाम रखा गया—'सुमतिधीर'। सं० १६१२ भाद्रपद शुक्ला ९ गुरुवार को जेसलमेर के राउल मालदेवजी ने आचार्य-पदारोहण का महोत्सव किया और बेगडगच्छ (खरतरगच्छ की ही एक शाखा) के आचार्य गुणप्रभसूरि ने इनको आचार्य पद प्रदान कर तथा जिनचन्द्रसूरि नाम प्रख्यात कर गच्छनायक घोषित किया। सं० १६१४ चैत्र कृष्णा सप्तमी को बीकानेर में समाज में प्रचलित शिथिलाचार को दूर कर इन्होंने क्रियोद्धार किया। सं० १६१७ में पाटण में जिस समय तपागच्छीय विद्वान् कदाग्रही उपाध्याय धर्मसागर ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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