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दीप्यन्ते शुचिवंशाः समस्तजनपूरिताशंसाः ।। ५२४॥
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जिनपद्मसूरि जिनलब्धिसूरि
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श्रीजिनकुशलाम्नाये श्रीमच्छ्री क्षेमकीर्त्तिशाखायाम् । श्री क्षेमराज - शिष्य- प्रमोदमाणिक्यगणिशिष्यैः ॥ ५२९ ॥ श्रीजयसोमैर्विहिता ।
इन प्रशस्तियों के आधार से इस परम्परा का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है
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उद्योतनसूरि
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वर्द्धमानसूरि
८२
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जिनेश्वरसूरि ( खरतरविरुद प्राप्तकर्ता ) ↓
जिनचन्द्रसूरि (संवेगरंगशाला के प्रणेता)
जिनवल्लभसूरि (मालवपति नरवर्मप्रतिबोधक)
गुणविनय गणि ने अपने समग्र ग्रन्थों में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के न केवल धर्म - साम्राज्य
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युगप्रधान जिनदत्तसूरि ↓
अभयदेवसूरि (नवांगी टीकाकार)
↓
जिनेश्वरसूरि
↓ जनप्रबोधसू
मणिधारी जिनचन्द्रसूरि ↓
जिनपतिसूरि
जिनचन्द्रसूरि
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जिनकुशलसूरि
महो० विनयप्रभ +
उपा० विजयतिलक
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