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________________ ६४ 'विषमपदप्रकाश' नाम से ही स्पष्ट है कि दमयन्तीचम्पू में भंगश्लेष की प्रधानता होने से विषम- पदों पर यह टीका लिखी गई है। २०० समास, कारक आदि सुगम होने से इन पर व्याख्या नहीं की गई है । २०१ व्याख्या शैली में चण्डपाल ने पहले उपमेय का विवेचन किया है बाद में उपमान का। इसी प्रकार पहले विरोध उपस्थित किया है और बाद में सम्यक् रीति से विरोध का परिहार किया है। २०२ कुशाग्र बुद्धि वालों के लिए यह रचना होने से सामान्यतः यह व्याख्या दुर्बोध अवश्य हो गई है। चण्डपाल ने इस व्याख्या में निम्नांकित लेखकों एवं ग्रंथों के उद्धरण दिए हैं— २०३ अभिधानकार अमरकोश अजय कविरहस्य काव्यप्रकाश चण्डसिंह चाणक्य धनिक नैषधीयचरित प्रशस्तपाद भरत पृ.१५८ पृ.१७ पृ.७७ पृ. २४ पृ.६ पृ. २१ पृ. १०६ पृ. १९१ पृ. १०६ पृ. ५० पृ.१६३ Jain Education International भवभृति भारवि मल्हण माघ मुद्राराक्षस मेघदूत मुकुटताडित विश्वप्रकाश व्यादि शिवमहिम्नस्तोत्र ध्यात्वा सरस्वती देवीं विबुधानन्ददायिनीम् । सुवर्णा पुण्यरूपां तामलङ्कारविराजिताम् ॥ १॥ दमयन्तीकथाचम्पू-विवृति : एक परिचय विवृतिकार गुणविनय ने दमयन्तीकथाचम्पू की टीका का नाम विवृति रखा है । जो प्रत्येक उच्छ्वास की प्रान्त पुष्पिका से स्पष्ट है । विवृतिकार ने ५ पद्यों में मंगलाचरण किया है। प्रथम पद्य में श्लेषगर्भित सरस्वती देवी की स्तुति की है। दूसरे पद्य में फलवर्धी पार्श्वनाथ की, तीसरे और चौथे पद्य में युगप्रधान जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूरि की स्तुति की है । पाँचवें पद्य में लिखा है कि श्री चण्डपाल ने कुछ पदों की अनिन्दया वृत्ति की रचना की है। शेष पदों का अर्थ प्रकाशन करते हुए मैं व्याख्या कर रहा हूँ पृ.१२० पृ.२१३ पृ.११३ पृ.१७६ पृ.३१ पृ. १६५ पृ. १८५ पृ.१०,३१ पृ. १० For Personal & Private Use Only पृ.१६३ www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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