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"चण्डपालोऽयं जैनः स्वीयटीकायां जैनव्याकरणसूत्राण्येव प्रमाणत्वेनोपन्यस्तवान्। तानि सूत्राणि दूरीकृत्यास्माभिः सर्वोपयोगीनि पाणिनि- व्याकरण- सूत्राणि सर्वत्र निहितानि।"
उपोद्घात पृ.९. सर्वोपयोगिता की दृष्टि से शास्त्री जी जैन व्याकरण सूत्रों के आगे कोष्ठक में पाणिनीय सूत्रों को दे सकते थे, किन्तु वैसा न करके सम्पादन शास्त्र की दृष्टि से मौलिकता का रक्षण नहीं किया है।
ताजिक-तन्त्रसार के प्रणेता समरसिंह भी प्रग्वाटवंशीय हैं। प्रशस्ति में समरसिंह ने अपनी पूर्वज परम्परा चण्डसिंह से मिलाई है। चण्डसिंह को किसी राजा का सचिव लिखा है। परम्पराप्रशस्ति पद्य निम्न है
त्रैलोक्यक्षितिपालमौलिसकलव्यापारपारङ्गमः, प्राग्वाटान्वयभूर्बभूव सचिवः श्रीचण्डसिंहाह्वयः। श्रीमान् शोभनदेव इत्यभिजने तस्याभवत् सजनः,
श्रीसामन्त इति प्रशान्तसुमतिस्तस्मादभूदङ्गभूः॥१०॥ तस्यात्मजः समजनिष्ट कुमारसिंहः, नामा प्रमाणितगुरुगरिमायगेहः । तत्सूनुना गणक,गमुदे स्मरेण, गन्धोभ्युदंघ्रियत ताजिकपद्यकोशात्॥११॥
यदि यह चण्डसिंह और चण्डपाल का भ्राता, चण्डिकाचरित महाकाव्य का प्रणेता चण्डसिंह एक ही है तो इसका वंशवृक्ष इस प्रकार बनेगा
यशोराज
चण्डसिंह
चण्डपाल
शोभनदेव.
सामन्त
कुमारसिंह
समरसिंह चण्डसिंह कहाँ का सचिव था, उल्लेख नहीं है। संभव है जालोर या गुजरात के किसी प्रान्त के शासक का सचिव हो। चण्डिकाचरित भी अनुपलब्ध है अन्यथा चण्डपाल या इनके पूर्वजों के सम्बन्ध में कुछ ऐतिहासिक सामग्री अवश्य प्राप्त होती।
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