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________________ ६१ आपेट के सूचीपत्र में क्रमांक २११ पर एक अज्ञात कर्तृक टीका का उल्लेख किया है किन्तु किसी प्रकार का विवरण नहीं है। ____१. चण्डपाल कृत विषमपदप्रकाश व्याख्या-इस व्याख्या के ३ संस्करण निकल चुके हैं-१. निर्णयसागर संस्करण, २. कथाभट्ट नन्दकिशोर शर्मा साहित्याचार्य सम्पादित संस्करण और ३. कैलाशपति त्रिपाठी सम्पादित संस्करण। टीकाकार चण्डपाल के सम्बन्ध में आगे विचार किया गया है। ___२. दामोदर कृत टीका-इस टीका का उल्लेख निर्णयसागरीय संस्करण की भूमिका में किया गया है और लिखा है कि इसकी प्रति जयपुर के राजगुरु श्री नरहरि शर्मा के संग्रह में थी। ३. बृहट्टीका-निर्णयसागर संस्करण के अनुसार इसकी प्रति जयपुर के राजवैद्य श्रीकृष्णराम शर्मा के संग्रह में थी। टीकाकार का नामोल्लेख नहीं है। संभव है आपैट की उल्लिखित अज्ञातकर्तृक टीका और यह बृहट्टीका एक ही हो! ४. नागदेव कृत टीका-डॉ. बर्नेल के सूचीपत्र में क्रमांक १५९ए पर इसका उल्लेख है किन्तु अन्य कोई विवरण प्राप्त नहीं है। ५. टिप्पणक-इसका गुणविनय गणि ने विवृति टीका की प्रशस्ति पद्य १४ में उल्लेख किया है। ६. गुणविनयोपाध्याय कृत 'विवृति' नामक टीका-टीकाकार ने सर्वत्र ‘विवृति' नाम ही प्रदान किया है किन्तु प्रान्त पुष्पिका में 'सारस्वती' नाम्नी वृत्ति का उल्लेख है अत: इस टीका का ही दूसरा नाम सारस्वती टीका है, पृथक् नहीं है। प्रस्तुत टीका एवं टीकाकार के सम्बन्ध में विस्तृत विचार आगे प्रस्तुत है। ७. महादेव पटवर्धन पुत्र मुद्गलसूरि सोमयाजी कृत पदप्रकाश टीका-सेन्ट्रल लायब्रेरी बड़ौदा में इसकी प्रति है। क्रमांक ११३८८ है। पत्र ११७ है। श्लोक परिमाण ४००० है। सातवां उच्छास अपूर्ण है। ८. नन्दकिशोर शर्मा साहित्याचार्य कृत भावबोधिनी टिप्पणी-इस टिप्पणी की रचना सं. १९८९ में हुई है। स्वर्गीय नंदकिशोर जी जयपुर के निवासी थे और राजगुरु-कथाभट्ट थे। यह टिप्पणी चण्डपाल कृत टीका के विषम स्थलों पर प्रकाश डालती है। यह चौखम्बा संस्कृत सीरिज, बनारस से सं. १९८९ में नलचम्पू के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। ९. कैलासपति त्रिपाठी कृत हिन्दी व्याख्या-कैलासपति त्रिपाठी एम.ए., व्याकरणाचार्य एवं साहित्याचार्य, भागलपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के प्राध्यापक थे। मूल एवं चण्डपालीय विषमपदप्रकाश पर यह व्याख्या न होकर हिन्दी अनुवाद है। यह चाौखम्बा संस्कृत सीरिज बनारस से प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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