________________
पर्वतभेदिपवित्रं जैत्रं नरकस्य बहुमतङ्गहनम्। हरिमिव हरिमिव हरिमिव वहति पयः पश्यत पयोष्णी।
दमयन्तीकथाचम्पू ६/२९ (ख) दशम परिच्छेद पद्य ३६ पर भ्रान्तिमान् अलंकार का उदाहरण
मुग्धा दुग्धधिया गवां विदधते कुम्भानधो बल्लवाः, कर्णे कैरवशंकया कुवलयं कुर्वन्ति कान्ता अपि। कर्कन्धूफलमुच्चिनोति शबरी मुक्ताफलाशंकया, सान्द्रा चन्द्रमसो न कस्य कुरुते चित्तभ्रमं चन्द्रिका॥
दमयन्तीकथाचम्पू २/३६ पद्य रचना - लक्ष्मण भट्ट अंकोलकर, सम्पादक केदारनाथ वासुदेव शर्मा, काव्यमाला गुच्छक ८९, निर्णयसागर संस्करण, सन् १९०८ तृतीय व्यापार पद्य ३३ निर्मांसं मुखमण्डले परिमितं मध्ये लघु कर्णयोः
स्कन्धे बन्धुरमप्रमाणमुरसि स्निग्धं च रोमोद्गमे। पीनं पश्चिमपार्श्वयोः पृथुतरं पृष्ठे प्रधानं जवे,
राजा वाजिनमारुरोह सकलैर्युक्तं प्रशस्तैर्गुणैः॥ १/४७॥ चतुर्थ व्यापार पद्य १४ परिहरति वयो यथा यथाऽस्याः स्फुरदुरुकन्दलशालि बालभावम्। द्रढयति धनुषस्तथा तथा ज्यां स्पृशति शरानपि सजयन्मनोभूः॥ ३/२९ ॥ पंचदश व्यापार पद्य ८१-८२
किं कवेस्तेन काव्येन किं काण्डेन धनुष्मतः। परस्य हृदये लग्नं न घूर्णयति यच्छिरः॥१/५॥ उत्फुल्लगल्लैरालापाः क्रियन्ते दुर्मुखैः सुखम्। जानाति हि पुनः सम्यक्कविरेव कवेः श्रमम्॥ १/२३ ॥
दमयन्तीकथाचम्पू की टीकाएँ इस ग्रंथ पर अनेक टीकाओं का अनेक विद्वानों ने समय-समय पर उल्लेख किया है जो इस प्रकार है
डॉ. हीरालाल ने अपने सूचीपत्र में क्रमांक २१४७ पर पाँच टीकाओं से युक्त दमयन्ती कथा का उल्लेख किया है किन्तु किसी प्रकार का विवरण न होने से यह स्पष्ट नहीं है कि पाँचों टीकाएं कौन सी हैं, इन टीकाकारों के क्या नाम हैं और इन टीकाओं की रचनाएं कब हुई हैं?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org