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________________ ५ ही धुरंधर अलंकार-शास्त्रियों एवं कवियों ने अपने-अपने ग्रन्थों में इस दमयन्तीचम्पू के कतिपय उदाहरण दिये हैं जो इसकी सार्वभौमिकता को प्रकट करते हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं१. धारेश्वर भोज (समय ई० १०१० से १०५५) ने सरस्वतीकण्ठाभरण परिचय-४, उदाहरण पद्य १९२ में शब्दैकावली अलंकार का उदाहरण देते हुए निम्न पद्य उद्धृत किया है पर्वतभेदिपवित्रं जैत्रं नरकस्य बहुमतङ्गहनम्। हरिमिव हरिमिव हरिमिव वहति पयः पश्यत पयोष्णी॥ दमयन्तीकथाचम्पू ६/२९ २. रुद्रटीय काव्यालंकार की टीका में नमि साधु (रचना सम्वत् ११२५) ने अध्याय ७, पद्य ३० में जाति अलंकार के उदाहरण में निम्न पद्य प्रस्तुत किया है। वल्कीवल्कपिनद्धधूसरशिराः स्कन्धे दधद् दण्डकं, ग्रीवालम्बितमृन्मणिः परिकुथत्कौपीनवासाः कृशः। एकः कोऽपि पटच्चरं चरणयोर्बध्वाऽध्वगः श्रान्तवानायातः क्रमुकत्वचा विरचितां भिक्षापुटीमुद्वहन्। दमयन्तीकथाचम्पू १/५२ ३. वाग्भट (समय चौदहवीं शताब्दी) ने काव्यानुशासन की स्वोपज्ञ टीका में निम्न उल्लेख किये हैं(क) चम्पू का उदाहरण देते हुए - यथा वासवदत्ता दमयन्ती वा निर्णयसागर संस्करण पृष्ठ १९ । (ख) शब्द-दोषों का उदाहरण देते हुए - त्रिविक्रमस्य यथा सरित इव गाव: पीवरोधसः, अत्र पीवरोध्य इति प्राप्नोति। निर्णयसागर संस्करण पृ० २० (ग) पदश्लेष का उदाहरण देते हुए पृष्ठ ५१ पर लिखा है जननीतिमुदितमनसा सततं सुस्वामिना कृतानन्दा। सा नगरी नगतनया गौरीव मनोहरा भाति। दमयन्तीकथाचम्पू १/३० ४. विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में दो उदाहरण दिये हैं(क) सप्तमपरिच्छेद पद्य १७ पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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