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काव्य में भौगोलिक स्थलों का नामोल्लेख मात्र नहीं होता, उन स्थलों का प्राकृतिक विशेषताओं और वहां के निवासियों की सभ्यता एवं संस्कृति की ओर भी संकेत किया जाता है। दमयन्तीचम्पू में ऐसा ही वर्णन मिलता है। इसे सांस्कृतिक-भूगोल नाम दिया जा सकता है। दमयन्तीचम्पू में आए हुए कुछ भौगोलिक स्थल इस प्रकार है
१. अंग-दमयन्ती के स्वयंवर में आए हुए राजाओं का उल्लेख करते समय अंग देश का नाम आया है। दशरथ का मित्र रोमपाद अंग देश का शासक रहा है। इसकी राजधानी चम्पा थी। भागलपुर के एक भाग का नाम चम्पानगर प्रसिद्ध है। यहां कर्णगढ भी है। इससे महाभारत की दुर्योधन द्वारा कर्ण को अंग का राज्य दिए जाने की बात पुष्ट होती है। अंग का विस्तार वैद्यनाथ से पुरी तक बताया गया है।१७४
२. अयोध्या-नल की राजधानी निषधा को अयोध्या (अविजेय) कहा गया है (प्रथम उच्छ्वास)। वहीं श्लिष्ट पदावली द्वारा निषधा को अयोध्या से उपमित किया गया है। अयोध्या के राजा दशरथ, रानी सुमित्रा, दाशरथि राम, भरत आदि का भी इसी प्रकार उल्लेख हुआ है। यह नगर इतिहास प्रसिद्ध रघुकुल की राजधानी रहा है और फैजाबाद जिले में अवस्थित है। मध्यकाल में यह बौद्धों का केन्द्र बन गया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अयोध्या की यात्रा की थी।
३. आर्यावर्त-दमयन्तीचम्पू के आरम्भ में ही आर्यावर्त का वर्णन मिलता है। कवि ने इसे समस्त भूमण्डल का तिलक और स्वर्ग की तरह सेवनीय कहा है। मनुस्मृति के अनुसार पूर्व और पश्चिम समुद्र के बीच तथा हिमाचल और विध्यांचल के बीच के भूभाग को आर्यावर्त कहते हैं। मनुस्मृति के टीकाकार कुल्लूक भट्ट ने आर्यावर्त शब्द के आधार पर इसकी विशेषता बतलाई है___ 'जिसमें आर्य बार-बार उत्पन्न होते हों-आर्याः अस्मिन् आवर्तन्ते पुनः पुनरिति।' कवि ने आर्यावर्त की गंगा और चन्द्रभागा नदियों का उल्लेख भी किया है। कवि के अनुसार आर्यावर्त में चातुर्वर्ण्य व्यवस्था में कभी कोई विकार नहीं आता। कवि के अनुसार आर्यावर्त संसारचन्द्र का सार, पुण्यशीलों का शरण-स्थल, धर्म का धाम, सम्पत्तियों का स्थान, मंगलों का निकेतन, सज्जनों के व्यवहार रूपी रत्नों की खान और आर्य-मर्यादा के उपदेश का आचार्य-भवन है। पुराणों में सम्पूर्ण भारतभूमि का नाम आर्यावर्त है।
४. कर्णाट-दमयन्तीचम्पू में राजा भीम को 'कर्णाटकान्ताकुचक्रीडाशैलमृगः' कहा है। रामनाथ से श्रीरंग तक का भूभाग कर्णाट देश कहा गया है। शिलालेखों से मैसूर से विजयपुर तक के भाग को कर्णाट कहा जाना सिद्ध होता है।१७५ इस कर्णाट के निवासी कर्णाट जाति के कहे गए हैं। कर्णाट की स्त्रियाँ सुन्दर और सुपुष्ट शरीर वाली होती होंगी।
५. कलिंग-दमयन्ती के स्वयंवर में कलिंग का राजा भी आया था। कलिंग उत्तर-पश्चिम में इन्द्रावती नदी की शाखा गोलिया से गोदावरी के मध्य तक था।१७६ यह उत्तर में उत्कल से मिलता है। कलिंग प्राचीन भारत का अत्यन्त समृद्ध भूभाग था। यहां के लोग दूर-दूर के देशों से
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