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मानव-प्रकृति का वर्णन
त्रिविक्रम केवल बाह्य प्रकृति का चित्रण करने में ही सिद्धहस्त नहीं था उसने मानव-प्रकृति का भी सुन्दर वर्णन किया है। अप्राप्य वस्तु में अनुराग हो जाया करता है - यह बात उसने नल के चरित्र से प्रमाणित कर दी। दमयन्ती की प्राप्ति से पहले ही कथा को समाप्त कर के उसने इस अनुराग को चरम सीमा तक विकसित होता हुआ दिखा दिया । स्त्री में संतान - कामना अत्यधिक होती है, यह संतान - वत्सला बन्दरी को देखकर प्रियंगुमंजरी के मन में जगे हुए भावों द्वारा कवि ने प्रकट किया। सामान्यतया समाज में कन्या से पुत्र का जन्म प्रशस्त समझा जाता है। प्रियंगुमंजरी ने इसी बात को लेकर कन्या - जन्म की सूचना देने वाले दमनक मुनि को खरी-खोटी सुना दी।
दमयन्ती स्वतंत्र जीवन जीने वाले पक्षियों को सराहती है
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उड्डीय वाञ्छितं यान्तो वरमेते विहङ्गमाः । न पुनः पक्षहीनचात् पङ्गुप्रायं कुमानुषम् ॥
नारी का भावुक मन विरह वेदना को अनुभव करके अत्यधिक विषण्ण हो जाता है। नारी की भावुकता का दर्शन दमयन्ती के इन शब्दों में किया जा सकता है—
२.
सुन्दरता की ओर आकृष्ट होना, काम-क्रीड़ाओं को देख कर विरह वेदना का तीव्र हो जाना, प्रसंगवश प्रिया का नाम सुन कर उत्कंठित हो जाना, प्रियामिलन के लिए प्रयत्नशील होना आदि बातें मानव मात्र में देखी जा सकती हैं। नल से सम्बद्ध सारी कथा इन बातों को लेकर ही आगे बढ़ती है। निम्न उक्तियों में मानव प्रकृति के सूक्ष्म स्तरों का उद्घाटन करने की चेष्टा दिखाई पड़ती है—
१.
विश्राम्यन्ति न कुत्रचिन्न च पुनर्मुह्यन्ति मार्गेष्वपि, प्रोत्तुङ्गे विलगन्ति नान्तरतरुश्रेणीशिखापञ्जरे । खिद्यन्ते न मनोरथाः कथममी तं देशमुत्कण्ठया,
धावन्तः पथि न स्खलन्ति विषमेप्यास्ते स यस्मिन्प्रियः ॥ १५६
भवति हृदयहारी क्वापि कस्यापि कश्चिन खलु गुणविशेषः प्रेमबंधप्रयोगे ॥ "
,१५७
१५५
का नाम तत्र चिन्ता प्रभवति पुरुषस्य पौरुषं यत्र । वाङ्मनसयोरविषये विधौ च चिन्तान्तरं किमिह ॥ १५८
३. दुर्लभेष्वनुरागः पुंसाम् । १५९
४. संसारसुखसर्वस्वं प्राणिनां हि प्रियो जनः । १६०
५.
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साप्तपदीनं सख्यं, उत्पन्नकतिपयप्रियालापा प्रीतिः, प्रयोजननिरपेक्षं
दाक्षिण्यं, अकारणप्रगुणं वात्सल्यं, अनिमित्तसुन्दरो मैत्रीभावः सतां लक्षणम् । १६१
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