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________________ ४४ विप्रलम्भ-वर्णन संयोग के उपरान्त ही वियोग की स्थिति आती है; परन्तु दमयन्तीचम्पू में जिस प्रकार के प्रेमवर्णन की पद्धति अपनाई गई है उसमें गुणश्रवण के उपरान्त ही नल और दमयन्ती में एक दूसरे के प्रति अनुराग का भाव जगा दिया था। क्षण-क्षण में परिवर्तमान प्रकृति के उद्दीपक स्वरूप और वार्ताहरों के वर्णनों से उनका अनुराग उद्दीप्त होता चला गया और वे तीव्र विरह-वेदना से ग्रस्त हो गए। गुणश्रवण कर के नल में पूर्वराग उत्पन्न हुआ, वह बिना ज्वर की अस्वस्थता, बिना दुर्गति की अस्थिरता, अविषास्वादनजनित मूर्छा, बिना बुढ़ापा आए जड़ता, अनिन्धन ज्वाला आदि कहा गया है।४३ दमयन्ती की रत्नावली को पाकर नल ने उसे अपने हृदय पर धारण कर लिया जैसे हृदयस्थित दमयन्ती को उसे दिखाना चाहता हो।१४४ हंस के संदेश देकर चले जाने पर नल की जो दशा हुई उसका वर्णन इन शब्दों में हुआ है आविर्भूतविषादकन्दमसमव्यामोहमीलन्मनश्चिन्तोत्तानितनिर्निमेषनयनं निःश्वासदग्धाधरम्। जातं स्थानकमुत्सुकस्य नृपतेस्तत्तस्य यस्मिन्नभूत्, प्रेयान्पञ्चमराग एव रिपवः शेषास्तु सर्वे रसाः॥१४५ उसे दक्षिण दिशा ही आनन्द-अंकुर के स्पर्श सी लगती थी लिप्तेवामृतपंकेन स्पृष्टेवानन्दकन्दलैः। आसीद् दिग्दक्षिणा तस्य कर्णयोर्मनसो दृशोः॥१४६ दमयन्ती की भी यही दशा थी। उसे न नींद आती थी और न प्रकृति का सौंदर्य ही लुभा पाता था। उसकी दशा का वर्णन देखिए लास्यं पांसुकणायते नयनयोः शल्यं श्रुतेर्वल्लकी, नाराचाः कुचयोः सचन्दनरसा: कर्पूरवारिच्छटाः। तस्याः काप्यरविन्दसुन्दरदृशः सा नाम जज्ञे दशा, प्राणत्राणनिबन्धनं प्रियकथा यस्यामभूत्केवलम्॥१४७ गर्भावस्था-वर्णन त्रिविक्रम को लोकाचार का पूर्ण ज्ञान था। इसी का प्रदर्शन करने के लिए उसने दमयन्तीचम्पू में दो बार गर्भावस्था का वर्णन किया है। भीम की पत्नी प्रियंगुमंजरी निस्संतान थी। वह एक वानरी को बच्चे को पेट से सटाए हुए देखकर ही सन्तानहीनता की असहयवेदना से दुःखी हो गयी। उसने सबसे पहले शिव को स्वप्न में प्रसन्न होकर पारिजातमंजरी देते हुए देखा। बाद में दमनकमुनि को आया हुआ देखकर ही उसने स्वप्न के प्रभाव को सत्य होता हुआ पा लिया। पहले वह दमनक से कन्या-जन्म की बात सुनकर दुःखी हुई; परन्तु शीघ्र ही प्रकृतिस्थ हो गयी। उसने कटु-वचन कहने के लिए महर्षि दमनक से क्षमा मांग ली। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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