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कर्णमूलविषये मृदुगुञ्जन्पाणिपल्लवहतोऽपि हठेन।
एष षट्पदयुवा हरिणाझ्याश्चम्बति प्रिय इवास्यसरोजम्॥१३७ किरात-युवतियों के इन विविध विलासों को देखकर नल को रोमांच हो गया एवं उसकी प्रेम-वेदना और भी बढ़ गई।
नखशिख-वर्णन दमयन्तीकथाचम्पू में रीतिग्रन्थों की तरह का नख-शिख वर्णन तो नहीं मिलता; परन्तु पात्रों के शारीरिक सौंदर्य का वर्णन श्लिष्ट पदावली में बड़े ही सुन्दर ढंग से हुआ है। नल के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि ने उसे अलौकिक शक्ति सम्पन्न, प्रशस्त अंगों वाला और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला चित्रित किया है, उसकी समानता हिमालय भी नहीं कर सकता है।१३८ राजा के सौंदर्य से सम्बद्ध एक श्लोक द्रष्टव्य है
अब्जश्रीसुभगं युगं नयनयोौलिमहोष्णीषवानूर्णारोमसखं मुखं च शशिनः पूर्णस्य धत्ते श्रियम्। पद्मं पाणितले गले च सदृशं शंखस्य रेखात्रयं,
तेजोप्यस्य यथा तथा सजलधेः कोप्येष भर्ता भुवः ॥१३९ इसी तरह दमयन्ती के सौंदर्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है-वह पदविन्यास के सौंदर्य से सिन्धुरवधू की गति को मात करती थी। चंवर की वायु से उसकी अलक-वल्लरी नाच रही थी। कानों में कमल का भूषण पहने हुए थी। सुन्दर चरणों में नूपुर धारण किए हुए थी। संगीत-प्रयोग में दक्ष थी। वक्र भौंहें कामदेव का धनुष ही थीं।१४० अन्यत्र उसके मुखप्रान्त की शोभा का वर्णन इस प्रकार मिलता है
आबध्नत्परिवेषमण्डलमलं वक्त्रेन्दुबिम्बाबहिः, कुर्वच्चम्पकजृम्भमाणकलिकाकर्णावतंसक्रियाम्। तन्वड्या परिनृत्यतीव हसतीवोत्सर्पतीवोल्बणं,
लावण्यं ललतीव काञ्चनशिलाकान्ते कपोलस्थले॥४१ दयमन्ती के सर्वदेवमय शरीर का वर्णन दृष्टव्य हैसुतारा दृष्टिः, सकामाः कटाक्षाः, सुकुमाराश्चरणपाणिपल्लवाः, सुधाकान्ति स्मितं, अरुणो दन्तच्छदः, भास्वन्तो दन्ताः, सुकृष्णाः केशाः, प्रबुद्धा वाणी, गौरी कान्तिः, गुरुः स्तनाभोगः, पृथ्वी जघनस्थली, सुरभिर्नि:श्वासः, सुगन्धवाहः प्रस्वेदः, सुश्रीकः सकलाङ्गभोगः।१४२
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