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________________ ४१ की चट्टानों से बने हुए हैं जिनमें घूमती हुई स्त्रियों के अलक्तकयुक्त चरणों का प्रतिबिंब लाल कमल बन कर भ्रमरों को आकृष्ट करता रहता है। आवास-भवन भी विविध मणियों से बने हुए हैं जिनमें अपना प्रतिबिंब देखकर स्त्रियाँ अपने पतियों से मान करने लगती हैं। वहां के मार्ग स्वर्ग सदृश हैं। नगरी में हस्तिशालाएँ, संगीतशालाएँ और कमलों से भरे हुए क्रीड़ा-सरोवर हैं। देवायतनों की कमी नहीं है। कवि-गोष्ठियाँ वहां निरन्तर चलती रहती हैं। सारे भूमण्डल की सम्पत्ति वहां एकत्र हो गई है।१३० इसी तरह कुण्डिनपुर इंद्रपुरी से स्पर्धा करने वाला है। यह खाइयों और उपवनों से घिरा हुआ है। इसमें गगनचुम्बी भवन, अग्निहोत्री ब्राह्मण, सन्मार्गस्थ गृहस्थ, अतिथिसेवीजन, व्यवसायकुशल वणिक्, विविध शिल्पज्ञ, स्वास्तिक चिह्न और बालकों से सुशोभित गृहद्वार, हस्तिशाला, अश्वशाला, चतुश्चरण, देवकुल आदि विद्यमान हैं।१३१ आखेट-वर्णन कवि को राज-दरबार की परम्पराओं और राजाओं की दिनचर्या का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त था। उसी के आधार पर उसने नल के आखेट का सुन्दर वर्णन किया है। सूकर की भयानकता का वर्णन इन शब्दों में द्रष्टव्य है किं स्यादञ्जनपर्वतः स्फटिकयोद्वंद्व दधदीर्घयोरम्भोमेदुरमेघ एष किमुत श्लिष्यद् बलाकाद्वयः। शून्यः किं नु करेण कुञ्जर इति भ्रान्तिं समुत्पादयन्, दंष्ट्राद्वंद्वकरालकालवदनः कोलः कुतोप्यागतः ॥१३२ कवि ने आखेट में प्रयुक्त होने वाले जाल, पाश आदि उपादानों को लेकर कुत्तों के साथ चलने वाले आखेटक, अश्वारूढ़ राजा आदि का श्लिष्ट शब्द चित्र बड़ी ही कुशलता से अंकित किया है। प्रहार-कुशल राजा, चंचल अश्व और बचाव करने वाले सूकर में से प्रत्येक के ऊपर कवि मुग्ध है; वह किसकी प्रशंसा करे : किमश्वः पार्श्वेषु प्लवनचतुरः किं नु नृपतिः, शरान्मुञ्चन्नुच्चैश्चलतरकराकृष्टधनुषः। किमालोलः कोलः परिहृतशरः शौर्यरसिको, न जानीमस्तेषां क इह परमो वर्ण्यत इति ॥१३३ नल और सूकर के घात-प्रत्याघात को सूर्य भी अपना रथ रोक कर देखने लगे१३४ । कवि को वीर, श्रृंगार और रौद्ररस को चित्रित करने का अवसर इसी प्रसंग में मिला है। विन्ध्याटवी-वर्णन प्रकृति के भयंकर रूप का वर्णन कवि ने विन्ध्याटवी-प्रसंग में किया है। कवि ने विन्ध्याटवी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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