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हास प्रकट हुआ है। उसके आते ही गृहदीर्घिका में हंस मांगलिक मृदंग की तरह ध्वनि करने लगे। वन में बन्धूक खिल गए जैसे पथिकों के हृदय-स्थल पर कामबाणों के घाव हों! आकाश में शुकपंक्ति उसके स्वागत में वन्दनमाला बन गई। धान की देखरेख करने वाली बालिकाएँ गीत गाने लगीं जैसे कामविजय की घोषणा हो रही हो। नीलकमल शरल्लक्ष्मी के कृपा कटाक्ष से खिल रहे थे।१२२ आकाश को आच्छादित करने वाली वर्षा काश-पुष्प से सुशोभित शरद् को देखकर कौन उत्कंठित नहीं हो सकता?
प्रावृषं शरदं चापि बहुधाकाशहारिणीम्।
विलोक्य नोत्सुकः कः स्यान्नरो नीरजसङ्गताम्॥१२३ सर्वर्तुनिवास नामक वन में सारी ऋतुओं को कवि ने एकत्र संयोजित कर दिया है।१२४ इन सारी ऋतुओं के वातावरण ने नल के प्रेमभाव को अतिशय उद्दीप्त कर दिया। ऐसी मनोऽवस्था में हंस का मिलन उसकी उत्कंठा को और अधिक बढ़ाने वाला प्रमाणित हुआ।
प्रदेश-वर्णन कवि ने आर्यावर्त और दक्षिण देश का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। वह आर्यावर्त को आर्यमर्यादा के उपदेश का आचार्य-भवन और सारे भूमण्डल का मुखमण्डल कहता है। सभी पुण्यकर्माओं का यह शरणस्थल है, धर्म की भूमि है और मंगलों का आश्रय स्थान है।२५ यहाँ के लोगों को कभी विपत्ति नहीं झेलनी पड़ती। यहां घर-घर में गौरवर्ण की स्त्रियाँ हैं, पूरा लोक महेश्वर है, हरि श्रीयुक्त हैं, कोई विनायक नहीं हैं।१२६ ।।
___ कवि ने दक्षिण देश और विदर्भ का वर्णन भी किया है। विदर्भ के वर्णन में कवि की अत्यधिक आत्मीयता झलकती है। अतः सम्भवत वे इसी क्षेत्र के निवासी होंगे। दक्षिण देश को कवि ने विस्तीर्ण भूमण्डल का भूषण, पर्वत, नगर, ग्राम, विहार और उद्यानों से रमणीय, सीता सहित राम के चरणों से पुनीत जंगलों वाला, गंगा-गोदावरी के पवित्र जल-तरंगों से दुरित और वनाग्नि के प्रसार को रोकने वाला, सभी देशों में श्रेष्ठ कहा है, जिसमें अनेक देवायतन हैं।१२७ उसमें वैदर्भ-मण्डल दक्षिण देश को भी अलंकृत करने वाला है और उसकी शोभा है-कुण्डिनपुर
देशानां दक्षिणो देशस्तत्र वैदर्भमण्डलम्। तदापि वरदातीरमंडलं कुण्डिनं पुरम्॥१२८
नगर-वर्णन त्रिविकम ने निषधापुरी और कुण्डिननगर का वर्णन बड़ी ही कुशलता से किया है। निषधापुरी गौरी के समान पवित्र कही गई है।१२९ उसकी गगनचुम्बी चहारदीवारी नीलमणि से बनी हुई थी जिस पर पड़ती हुई सूर्य किरणे अत्यन्त मनोहर लगती थी, जैसे अंकुर निकल आए हों जिन्हें खाने की इच्छा से सूर्य के घोड़े दोपहर को नीचे उतरना चाहते हैं। वहां आंगन स्फटिक मणि
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