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चन्द्रमा के उदय होने पर सभी पर्वत कैलास बन गए। वृक्ष श्वेत छाते की तरह लगने लगे। पंक दही की तरह दिखाई पड़ा। समुद्र-जल दूध बन गया। लताएं मुक्तामाला सी प्रतीत हुईं। बेल फल शंख जैसे लगे। सब पक्षी हंस, हाथी ऐरावत और चट्टानें रजतराशि लगने लगे।१६
चन्द्रमा द्वारा विकीर्ण सौंदर्य-राशि नल के लिए तो दाहक हो गई थी। रश्मियां उसे अग्निवत् प्रतीत होने लगीं।११७ __प्रेम में जो वस्तु संयोग में सुख का कारण बनती है वियोग में वह उतनी ही वेदना उत्पन्न करती दिखाई देती है।
मध्याह्न-वर्णन कवि का मन केवल प्रकृति के कोमल पक्ष का वर्णन करने में ही नहीं रमा। उसने प्रकृति के भीषण पक्ष का वर्णन करने में भी अपना कौशल दिखाया है। मध्याह्न की भीषण सूर्य-किरणों और उनके प्रभाव का चित्रण भी कवि ने अपनी लेखिनी से तल्लीनता पूर्वक किया है।
मध्याह्न में हंस कमलनाल का खाना छोड़कर अपने शरीर को सूर्य की प्रखर किरणों से बचाने के लिए कमलपत्रों की छाया का आश्रय लेते हैं। भ्रमर पुष्पों का आस्वादन करना छोड़कर पत्र-समूह में घूस जाते हैं। सारस व मयूर अपनी प्यास बुझाने उपवन के अरघट्टों के समीप आते हैं, कलविंक पक्षी कुँओं के खोखले स्थानों में प्रविष्ट हो गए हैं।११८
___ असह्य धूप पक्षियों को मार्ग से स्खलित कर देती है। प्यास से व्याकुल होकर जंगली जानवर हाँफते हुए जलाशय की ओर बढ़ते हैं। वन-विहार करने वाले हाथी, सूअर और भैंसे नदी तट पर कीचड़ को मर्दन करने लगे। पक्षी कोहरों में छिप गए।१९
ऋतु-वर्णन त्रिविकम भट्ट ने भारत का विविध रूप से श्रृंगार करने वाली षड् ऋतुओं का वर्णन भी किया है। वर्षा और नायिका के सौंदर्य का श्लिष्ट-वर्णन कवि ने प्रथम उच्छ्वास में किया है।
पयोधरों से धाराएँ गिर रही हैं। वर्षा के आगमन से कमल प्रसन्न हैं। सुरचाप दिखाई देने लगा है, विद्युत् चमक रही है, बादल गरजते ही राजहंस मानसरोवर की ओर उड़ गए हैं। राजा को देखने के लिए वर्षा अद्वितीय श्रृंगार कर के धरती पर उतर रही है।१२०
वर्षा नहीं जैसे काम का अभिषेक हो रहा है, मयूर ध्वनि मृदंग हैं, बादलों का गर्जन नगाड़े का काम कर रहे हैं, अंकुरों के बहाने भूमि रोमांचित हो रही है और प्रसन्नता के मारे शिलीन्ध्रध्वजों को धारण कर रही है।१२१ ।
कवि की लेखिनी से वर्षा की कोई विशेषता नहीं छूटी है। वर्षा-नायिका के वृद्धा हो जाने पर नल का मनोरंजन करने के लिए शरद् तरुणी का आगमन हुआ है-कलहंस के रूप में जिसका
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