________________
३८
___ ऐसे अनेक सुन्दर चित्र दमयन्तीचम्पू में मिलते हैं। दमयन्तीचम्पू की कथा रात्रि की समाप्ति के साथ ही पूरी हो गई है यदि उसके आगे तृतीय उच्छास के इस प्रात: वर्णन को जोड़ दिया जाए तो कथा की अगली दिशा को समझना सरल हो जाएगा और इस प्रकार कवि की कला का एक अन्य चमत्कार देखने को मिलेगा।
सन्ध्या -वर्णन
सन्ध्या का श्लिष्ट चित्र द्वितीय उच्छ्वास में देखा जा सकता है। सूर्य थक कर वारुणी नायिका का चुम्बन करने के लिए रथ को नीचे उतार रहे हैं। पति का परकीया प्रेम देखकर प्राची शोक मग्न हो गई। पेड़ों की छाया उसे आश्वस्त करने के लिए दौड़ रही है। शुकों से हरे और वानरों से घिरे हुए जंगल से गोमण्डल लौट गया। वनदेवता ने रक्तचन्दन का अर्घ्य प्रदान कर के चक्रवाक-दम्पती के विरह-क्रन्दन के बहाने दिनपति को रोकना चाहा। दिशा रूपी नायिका ने कृष्णागुरु से पत्र रचना की। नाचते हुए मयूरों की शिखाओं से शिलाखण्ड काले हो गए। भवन की दीवारें कज्जल-चित्रों से काली हो गईं। विरहिणियों के नि:श्वास की धूम से पथिकों का मार्ग काला हो गया। विलासगृहों में कस्तूरी छिड़क दी गई। आकाश-लक्ष्मी ने काली कंचुकी पहन ली और अंधकार रूपी हाथी के कुम्भस्थल को भेदने के लिए सोने के तीखे भाले के समान दीपक जल
गए।११०
चन्द्रोदय-वर्णन सन्ध्याकाल बीतने पर रात्रि के श्रृंगार चन्द्रमा का उदय होता है, उसका भी सुन्दर वर्णन दमयन्तीचम्पू में हुआ है। चन्द्रमा का उदय होते ही कौआ भी हंस जैसा दिखाई देने लगा११ । सारा संसार चूते हुए चंदन की तरह फैलने वाली चन्द्रकांति से श्वेत हो गया। दिन समझ कर कौआ जाग उठा और अपनी प्रिया को ढूँढता हुआ क्रन्दन करने लगा। उसे सामने बैठी हुई काकी दिखाई नहीं पड़ी।१२ गोप-बालकों ने चन्द्र-ज्योत्सना को दूध समझ कर गायों के थन के नीचे घड़ा रख दिया। रमणियों ने नीलकमल को श्वेतकमल समझ कर कानों में लगा लिया। शबरी ने बैर को मुक्ताफल समझ लिया। किसको चन्द्र की चन्द्रिका ने भ्रांत नहीं किया?११३ मानो आकाश से कपूर के कण चूने लगे अथवा मनोमुग्धकारी चन्दन-बिन्दु या अमृत-बिन्दु के झरने हैं।१४ ___उदीयमान चन्द्रमा समुद्र के तट से प्रस्थित राजहंस की तरह है, उदयाचल की गुफा से निकल कर अन्धकार रूपी हाथियों का पीछा करने वाले सिंह-शावक की तरह है, काम के मंगल के लिए सजे हुए स्फटिक के पूर्णकलश की तरह है, ऐरावत के कुंभस्थल की तरह है, कैलास पर्वत के टूटे हुए गण्डशैल की तरह है, पूर्व दिशा के मुख के सीमन्त-मौक्तिक के समान है अथवा दूध के फेन के गोले के समान है।११५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org