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सङ्गता सुरसार्थेन रम्या मेरुचिराश्रिया।
नन्दनोद्यानमालेव स्वस्थैरालोक्यतां कथा॥१/२४ कवि ने सभंग श्लेष के अतिरिक्त विभावना, असंगति, विरोधाभास, अपह्नति, उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, यमक, अनुप्रास, व्याजस्तुति, व्याजनिन्दा, अत्युक्ति, परिसंख्या आदि विविध अलंकारों का प्रयोग कर के भी अपनी वाणी को इनसे बोझिल नहीं बनाया है और उसकी रुचि सदैव रसात्मकता में ही केन्द्रित रही है।
दमयन्तीकथाचम्पू में वस्तुवर्णन दमयन्तीचम्पू का कथानक महाभारत से लिया गया है। वनपर्व में नलोपाख्यान आया है। दमयन्तीचम्पू में कवि ने उसका एक ही अंश लिया है; परन्तु उसे उसने अपनी प्रतिभा के बल पर विस्तार देकर चम्पूकाव्य के रूप में निबद्ध किया है। वस्तु-विस्तार के लिए कवि ने प्रकृति-वर्णन का सहारा लिया है। प्रकृति के मनोरम चित्र उपस्थित कर के कवि ने अपनी प्रकृति-प्रियता का परिचय दिया है। प्रकृति मानवी-प्रकृति की सहयोगिनी रही है। कहीं वह मानवभावों को उद्दीप्त करती है और कहीं वह उसकी सौंदर्य-लिप्सा को तृप्ति प्रदान करती है। त्रिविकम ने अन्त:प्रकृति और बाह्य प्रकृति का सुन्दर सामंजस्य प्रस्तुत किया है। श्लिष्ट पदावली में कवि को ऐसा करने का और भी अधिक अवसर मिला है।
प्रातःकाल-वर्णन प्रकृति के चितेरे कवि ने प्रात:काल की सुरम्य छटा का वर्णन बड़े ही मनोयोग पूर्वक किया है। प्रात:काल होते ही रात चन्द्रमण्डल का चाँदी का घड़ा लेकर पश्चिम समुद्र के तट पर उतरने लगी। कमल वनों में कमलिनियों के कुड्मलनयन खिलने लगे। उनमें काजल रेखा से भंवरों की पांते उल्लसित होने लगीं। दीर्घिकाओं के अलंकार हंस पंखों के फड़फड़ाहट की वायु से पूर्ण विकसित कमलों को चंचल बनाने लगे। सारसों की चोंचें चक्रवाकों को मिलाने के लिए चांदी की झालर सदृश सरस केंकार करने लगे।१०६
पूर्व दिशा को केसर के गाढ़े घोल से सींचा जाने लगा। जैसे तारकासुर को कुमार कार्तिकेय ने समाप्त किया वैसे ही सुकुमार किरणें तारकों को मिटाने में लगी हैं। अंशुमाली पूर्वाचल पर चढ़ कर संसार का मंगलारम्भ करने वाला कलश बन गया।०७
प्राची के कपोल कुंकुम सूर्य ने कमलिनी वन की आलस्य राशि को समाप्त करने का व्रत ले
लिया।१०८
भगवान सूर्य की किरणों को हाथियों के कुम्भस्थल पर देख कर महावत सिंदूर की भाँति से छूते हैं। किरात-पत्नियाँ वृक्षों के आलवाल में पड़ी हुई किरणों को पल्लव की भाँति से चुन रही हैं तथा रमणियाँ हाथों में पड़ी हुई कुंकुम समझ कर पोंछ रही हैं ।१०९
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