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वीर, भयानक और रौद्र रसों का वर्णन आखेट प्रसंग में देखा जा सकता है। शान्त रस की व्यंजना आश्रम वर्णन में हुई है। ये सब रस मुख्य रस-शृंगार के अंग बनकर आए हैं।
कवि ने सब से अधिक रुचि प्रकृति वर्णन की ओर दिखाई है। इसमें कवि ने इतनी तल्लीनता दिखाई है कि आधुनिक आलोचकों द्वारा की गई प्रकृति रस को मानने की स्थापना का औचित्य दिखाई पड़ता है।
त्रिविकम भट्ट के वर्णन पर दृष्टि डालने से यह भी संकेत मिलता है कि भक्ति-आन्दोलन भले ही तीव्र न हुआ हो; परन्तु लोगों ने उसमें रुचि लेना प्रारंभ कर दिया था। कवि ने प्रेम-भावना के विकास में पद-पद पर शिव की भक्ति को इस प्रकार छा दिया है कि काव्य-रचना के उद्देश्य के विषय में पुनर्विचार करने की भी आवश्यकता हो सकती है। ऐसा ज्ञात होता है कि लौकिक-प्रेम की पृष्ठभूमि में सूत्र-रूप में भक्ति को पिरो कर कवि भक्ति को जीवन में प्रतिष्ठित करना चाहता है। स्वयंवर के पहले की रात्रि को शंकर की कृपा से बिता कर आगे के लिए सुखद अंत की कल्पना को पाठक पर छोड़कर कवि कदाचित् भक्ति की महिमा को कथा में संयोजित करना चाहता था। शृंगारिक रति से भक्ति विषयक रति को भिन्न मान कर भक्ति-रस की कल्पना की गई है। दमयन्तीचम्पू को भक्ति-रस की दृष्टि से भी प्रौढ़ रचना माना जा सकता है। आगे के भक्तिआन्दोलनकारों ने श्रृंगार की पृष्ठभूमि में भक्ति को प्रतिष्ठित करने का ऐसा ही प्रयत्न किया है। - रस-चित्रण की दृष्टि से दमयन्तीचम्पू को अत्यन्त सफल रचना माना जा सकता है। यह अवश्य है कि चमत्कार-प्रियता के कारण रस के पूर्ण परिपाक का अवसर कवि को सर्वत्र नहीं मिला। इसलिए वह रस-परिपाक में व्यंजना द्वारा ही सफलता पाने की चेष्टा करता रहा है। इस रूप में वह रस-सिद्ध कवि है। उसे श्लिष्ट-काव्य की रचना में ही रसानुभूति हुई है। वह मानता है कि प्रसाद गुण युक्त कोमल भावों वाले आम्रफल के समान मधुर काव्य और श्लिष्ट काव्य के रस में रचना-चातुरी के वैशिष्ट्य से अंतर आ ही जाता है
काव्यस्याम्रफलस्येव कोमलस्येतरस्य च। _बंधच्छायाविशेषेण रसोऽप्यन्यादृशो भवेत्। १/१७
उसने यह भी कहा है कि सभंग-श्लेष से वाणी में थोड़ी कठिनाई अवश्य आ जाती है; परन्तु इससे उद्विग्न नहीं होना चाहिए क्योंकि कवि के लिए रस एक ही नहीं है
वाचः काठिन्यमायाति भङ्गश्लेषविशेषतः।
नोद्वेगस्तत्र कर्तव्यो, यस्मादेको रसः कवेः॥१/१६ कवि ने रस चित्रण में सफलता अपने ही दृष्टिकोण से पाई है। अपनी कृति की उत्तम रसयुक्तता को कवि ने स्वयं स्वीकार किया है
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