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अहो वात्सल्यं, अहो परमौदार्यं, अहो लोकवृत्तकौशलं,
अहो वाग्विभववैदग्ध्यम्, अहो प्रश्रयोऽस्य विदर्भराजस्य । १००
भीम ने नल के लिए सुस्वादु व्यंजन बनाकर भेजे। सभी प्रकार उसने भीम को रत्नाकर से उपमित माना है।१०१
प्रियंगुमंजरी
दमयन्ती की माता प्रियंगुमंजरी भीम की प्रिय पत्नी थी। वह अपने सौंदर्य से देवरमणियों की सौंदर्य-सम्पत्ति को तिरस्कृत करती थी । उसकी यौवनश्री पताका की तरह सर्वोच्च थी। वह स्वयं शृंगार का भवन, रमणी - सुलभ विभ्रमांकुरों की भूमि, प्रेमवृत्तनृत्त की रंगभूमि थी १०२ । उसकी वाणी अत्यन्त मधुर थी । कवि के शब्दों में उसके सौंदर्य का वर्णन द्रष्टव्य है
तस्याः कान्तिनिरुद्धमुग्धहरिणीलीलाचलच्चक्षुषस्तारुण्यस्य भरादनालसलसल्लावण्यलक्ष्मीरसः । लुभ्यल्लोकविलोचनांजलिपुटै: पेपीयमानोऽपि सनंगेष्वेव न माति सुन्दरतरो रंगस्तरंगैरिव ॥ १०३
सन्तति के अभाव के कारण उसके मन में असीम वात्सल्य संचित हो गया था, जो अवसर पाकर वानरी को देख कर प्रकट हो गया । वह सन्तति पाने के लिए चन्द्रमौलि शिव की उपासना में प्रवृत्त हो गयी। उसकी भक्ति को देख कर शिव ने उसे स्वप्न में आकर वरदान दिया । वह पुत्र चाहती थी। दमनक मुनि से कन्या - जन्म की बात सुनकर वह अत्यन्त क्रुद्ध और दुःखी हो गयी । उसने दमनक मुनि की श्लिष्ट वाणी में निन्दा भी की । अन्त में उसने इसे भगवत्प्रसाद मान कर संतोष कर लिया और दमनक से क्षमा माँग ली। गर्भवती प्रियंगुमंजरी का वर्णन कवि ने इन शब्दों में किया है
तेन च विकचचूतमंजरीव कोमलफलबंधने बंधुररमणीयाकृतिः, चन्द्रकलेव कलाप्रवेशेनोपचीयमानप्रभा, प्रभातवेलेवोन्मीलदंशुमालिमण्डलेनानन्द्यमाना, रत्नाकरतरंगमालेवान्तःस्फुरन्माणिक्यकान्तिकलापेनोद्भासमाना, गर्भसंदर्भितेन लावण्यपरमाणुपुंजेन व्यराजत राजमहिषी । १०४
उसने कन्यारत्न को वैसे ही जन्म दिया जैसे पृथ्वी ने किसी पुण्यतीर्थ को उत्पन्न किया होअमन्दानन्दनिष्यन्दमपास्तान्यक्रियाक्रमम् ।
जगज्जन्मोत्सवे तस्याः पीतामृतमिवाभवत्॥१०५
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दमयन्ती को सौंदर्य और स्वभावौदार्य प्रियंगुमंजरी से ही मिला था। इसका चरित्र दमयन्ती के चरित्र के विकास में सहायक हुआ है।
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