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________________ ___ ३२ राजा भीम दमयन्ती का पिता भीम लोकोत्तर गुणों का पुंज है। वह वीरता की कसौटी है। शौर्य प्रदर्शन में वह सबसे आगे रहता है। उसकी कीर्ति अपरिमित है। वह सत्यवादी है और वेदानुसार जीवनयापन करने वाला है। वह तेजों में विशिष्ट तेज, धीरता का आधार, पौरुष का पुर, श्रेय, श्री और श्रुति का आश्रय है। उसके प्रभाव से उसकी प्रजा समृद्ध और श्रेयोमार्गी थी। उसके आश्रित उससे धन, सम्मान पाते थे, बंधन नहीं। वह श्रेष्ठ पुरुषों के गुणों में अनुरक्त रहता था। उसके द्वारा कभी कोई अपमानित नहीं होता था। वह दक्षिण दिशा का मुखतिलक था। रानी को संतान के अभाव से दुःखी जानकर वह भी शिव की आराधना में दत्तचित्त हो गया। उसके लिए सारी प्रकृति ही शिवमयी हो गयी। शिव द्वारा भेजे हुए दमनक मुनि का उसने यथोचित सत्कार किया। मुनि के अनुसार सज्जन का स्वभाव इस प्रकार है उपकर्तुं प्रियं वक्तुं कर्तुं स्नेहमकृत्रिमम्। सजनानां स्वभावोऽयं केनेन्दुः शिशिरीकृतः॥ यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रिया। चित्ते वाचि क्रियायां च साधूनामेकरूपता॥ विवेकः सह सम्पत्त्या विनयो विद्यया सह। प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतं चिह्नमेतन्महात्मनाम्॥१८ ये सब गुण दमनक मुनि के अनुसार भीम में विद्यमान थे। वह अत्यन्त परिष्कृत रुचि वाला था। भोजनोपरान्त वह विविध विनोद-गोष्ठियों में भाग लिया करता था। उसकी रात्रि-चर्या भी विलासिता युक्त थी। दमयन्ती के उत्पन्न होने पर उसे अतीव प्रसन्नता हुई और उसकी युवावस्था को देखकर उसने अपने कुलक्रम के अनुसार स्वयंवर का आयोजन किया। भीम अत्यन्त विनयी था। नल के कुण्डिनपुर आने पर वह स्वयं उसका स्वागत करने के लिए पहुँचा। घोड़े से उतर कर आगे बढ़ कर उसने नल का अभिनन्दन किया। नल के साथ ही उसने अपना सिर झुकाया और नल का आलिंगन किया। कवि के शब्दों में दोनों का मिलन ऐसा था जैसे उत्तर के दिक्पाल कुबेर और दक्षिण के दिक्पाल धर्मराज मिले हों। उसने कहा अद्यास्मत्कुलसंततिः सुकृतिनी धन्याद्य दिग्दक्षिणा, पुण्यप्राप्यसमागमातिथिजना जाताः कृतार्थाः श्रियः। श्लाघ्यं जन्म च जीवितं च निजमप्यद्यैव मन्यामहे, यत्रास्मत्सुकृतोदयेन बहुना यूयं गृहानागताः॥९ उसने नल को अनेक उपहार प्रदान किए। उसने अपने प्राण, राज्यादि को भी नल को समर्पित कर दिया। नल ने भी बहुमानपूर्वक भीम को सम्मानित किया। ताम्बूल समर्पण करके प्रेम प्रकट किया। भीम के गुणों का नल ने इस प्रकार मूल्यांकन किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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