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शीघ्र ही वह युवावस्था को प्राप्त हो गई। उसके युवा-रूप का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है
तत्तस्याः कमनीयकान्तविजितत्रैलोक्यनारीवपुः, श्रृंगारस्य निकेतनं समभवत्संसारसारं वयः।। यस्मिन्विस्मृतपक्ष्मपालिचलना: कामालसा दृष्टयो,
नो यूनां पुनरुत्पतन्ति पतिताः पाशे शकुन्ता इव॥६५ हंस ने दमयन्ती के शरीर को सर्वदेवमय और सर्वनक्षत्रमय कहा है६६। उसमें अलौकिक सौंदर्य प्रस्फुटित हुआ था
लावण्यातिशयः स कोऽपि मधुरास्ते केऽपि दृग्विभ्रमाः, सा काचिन्नवकन्दलीमृदुतनोस्तारुण्यलक्ष्मीरपि। सौभाग्यस्य च विश्वविस्मयकृतः सा कापि संपद्यया,
लग्नानंगमहाग्रहा इव कृताः सर्वे युवानो जनाः॥६७ उसकी शैशवावस्था को युवावस्था ने तर्जित करके अपना प्रभाव दिखलाना प्रारंभ कर दिया
दूराभोगभरेण भुग्नगतिना श्लिष्टा नितम्बस्थली, धत्ते स्वर्णसरोजकुड्मलकलां मुग्धं स्तनद्वंद्वकम्। आलापाः स्मितसुन्दराः परिचितभूविभ्रमा दृष्टय
स्तस्यास्तर्जितशैशवव्यतिकरं रम्यं वयो वर्तते ॥६८ पहले पथिक से और फिर हंस से नल के सौंदर्य और गुणों का वर्णन सुनते ही वह नल में अनुरक्त हो गयी। वह कहती है-'नामाप्यालादजनकं नलस्य।' उसके लिए तो नल अनल हो गया था६९। नल के परिवार का सारा वृत्तान्त जान कर दमयन्ती के हृदय में नल के प्रति प्रेम और अधिक बढ़ गया। दमयन्ती के हृदय में प्रेम दो बार गुणश्रवण से उत्पन्न हुआ था इसलिए कवि ने उसे 'द्विजन्मा' कहा है। इस विशेषण से उसके प्रेम की पवित्रता व्यंजित होती है। यद्यपि इसके उपरान्त उस पर कामदेव ने पूरी तरह से प्रभाव डाल दिया; परन्तु उसने धैर्यशीलता के कारण अपनी मनोऽवस्था को प्रकट नहीं होने दिया। वह हंस के निरपेक्ष पक्षपात, स्वभावज सौजन्य, अकृत्रिम स्नेहभाव, अनुपचरित उपकारित्व, अपरिचया प्रीति, अनभ्यास सौहार्द और अदृष्टपूर्वा मैत्री से अभिभूत थी। वह हंस के प्रति बड़े ही सौजन्य का प्रदर्शन करती है। उसने नल के लिए उपहार के रूप में हार प्रदान किया और साथ ही अपना प्रेमभाव भी प्रकट कर दिया। उसकी उत्कंठा इन शब्दों में देखी जा सकती है
तात तावन्ममाप्येवं न विधत्से प्रजापते। पक्षौ पक्षिवदुड्डीय येन पश्यामि तन्मुखम्॥७०
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