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________________ राजा ने देवताओं का सन्देश अत्यन्त संयमपूर्वक दमयन्ती से कह दिया। दमयन्ती के मनोभावों को जानकर वह मन ही मन प्रसन्न था और रात्रि में शिव की प्रार्थना करता हुआ उस प्रात:काल की प्रतीक्षा करने लगा जब दमयन्ती उसकी अपनी परिणीता होगी। वह सौंदर्य, प्रेमाचार और नीतियुक्त व्यवहार में अनुपम है, तभी देवों की तुलना में दमयन्ती को उसी में प्रीति हुई। दमयन्ती दमयन्ती चम्पू की नायिका है। इसी के नाम पर इस कृति का नाम 'दमयन्ती कथा' भी है। कवि ने उसके शारीरिक सौंदर्य और प्रेमरंजित मन का बड़े ही मनोयोग पूर्वक वर्णन किया है। गति में वह सिन्धुरवधू को भी तिरस्कृत करती थी। उसके सौंदर्य को देखकर सामान्य पथिक भी मुग्ध होकर सोचने लगा किं लक्ष्मीः स्वयमागता मुररिपोर्देवस्य वक्षःस्थलात्कोपात्पत्युरुतावतारमकरोद् देवी भवानी भुवि। श्यामाभ्भोजसदृक्षपक्ष्मलचलनेत्रामिमां पश्यतो, धातस्तात करोषि किं न वदने चक्षुःसहस्रं मम।५८ उसका मुख चन्द्रमा के सौंदर्य को प्रस्तुत करता था, आँखें कमल से स्पर्धा करती थीं, बाल यमुना के समान थे। सौभाग्य गुणों की सागर उसकी नवीन यौवन लक्ष्मी का क्या वर्णन किया जाए? वह तो कामदेव की वैजयन्ती है५९। शेषनाग अपनी 2000 जिह्वाओं से भी उसकी महिमा का वर्णन करने में समर्थ नहीं है६० । कवि ने उसे मन्मथमंजरी तक कह दिया है।६१ उसको उत्पन्न करके ब्रह्मा का शिल्प-परिश्रम श्लाघनीयता को प्राप्त हो गया सर्गव्यापारखिन्नस्य बहोः कालाद्विधेरपि। आसीदिमां विनिर्माय श्लाघ्यः शिल्पपरिश्रमः ॥६२ इसका दमयन्ती नाम दमनक मुनि के आशीर्वाद से प्राप्त होने के कारण रक्खा गया था। शैशवकाल में ही उसमें प्रौढ़ता दिखाई पड़ती थी अपि रेणुकृतक्रीडं नरेऽणु क्रीडयान्वितम्। तस्याः प्रौढं शिशुत्वेऽपि वयो वैचित्र्यमावहत्॥६३ उसने शीघ्र ही बुद्धिविकास से शीघ्र ही पुण्यकर्मों में निपुणता प्राप्त कर ली। विविध कलाओं में ही वह प्रवीण नहीं हुई, अपितु उसने अनाथों और रोगियों की चिकित्सा करने में भी चतुरता प्राप्त कर ली। कोई विद्या या कला ऐसी नहीं थी जिसमें उसने बुद्धिकौशल नहीं दिखाया हो न तत्काव्यं न तन्नाट्यं न सा विद्या न सा कला। यत्र तस्याः प्रबुद्धाया बुद्धिर्नैव व्यजृम्भत ॥६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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