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________________ २२ वह कलाविज्ञ था। याचकों को वह सदा संतुष्ट किया करता था। विविध ऋतुओं के अनुकूल उसकी दिनचर्या थी। नल प्रकृति से क्रूर नहीं था। सूकर का आखेट करने में वह लोकहित की दृष्टि से ही प्रवृत्त हुआ। इसके अतिरिक्त वह प्रकृति-प्रेमी होने के कारण भी वन में गया। नल के वीरदर्प का चित्रण सूकर से संघर्ष करते समय हुआ है। नल में चक्रवर्तित्व के सभी लक्षण थे। उसके निश्चल मन में दमयन्ती- गुणश्रावण मात्र से स्नेह का अंकुर उद्भूत हो गया। उसका मन अस्थिर हो गया। धीर होने पर भी उसका मन कामाग्नि के परवश हो ही गया। ___नल ने दमयन्ती के विषय में थोड़ी विस्तृत जानकारी हंस से प्राप्त की। नल चतुर संवादी की तरह हंसिनी से वार्तालाप करता है। हंस नल को 'वैदग्ध्यधुरन्धर, धूर्तालाप पंडित, प्रज्ञाभार गुरु, चातुर्याचार्य' आदि सम्बोधनों से सम्बोधित करता है४३। ___ कवि ने-'साप्तपदीनं सख्यं, उत्पन्नकतिपयप्रियालापा प्रीतिः, प्रयोजननिरपेक्षं दाक्षिण्यं, अकारणप्रगुणं वात्सल्यम्, अनिमित्तसुन्दरो मैत्रीभावः सतां लक्षणम् ४४ कह कर इस शंका को निरस्त कर दिया है कि नल का प्रथम गुणश्रवण मात्र से दमयन्ती की ओर आकृष्ट होना उसकी कामुक-प्रवृत्ति का द्योतक है। नल को हंस ने 'शृंगार-रस-शृंगार'४५ कहा है। हंस से दमयन्ती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर उसकी प्रेमवेदना बढ़ गई, परन्तु धैर्य ने उसका साथ नहीं छोड़ा। उसने कहा मंडलीकृतकोदण्डः कामः कामं विचेष्टताम्। न व्यथिष्ये स्थितः स्थैर्ये धैर्य धामवतां धनम्॥४६ उसने प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर अपने मनोभावों को शान्त कर लिया। उसके जन्म से राज्यश्री समुच्छसित हुई, प्रेमीजन प्रसन्न हुए, नागरिक नाचने लगे और द्वेषी विदीर्ण हो गए। उसके जन्म का प्रभाव कवि ने इन शब्दों में व्यक्त किया है अवृष्टिनष्टधूलीकमशरन्निर्मलाम्बरम्। अपीतमत्तलोकं च जगजन्मोत्सवेऽभवत्॥४७ नल ने अपने नाम के अर्थ को (धर्मपूर्वक अर्जित सज्जनों की सम्पत्ति को न लेगा-न लास्यति धर्मधनान्येष साधुभ्यः) अपने आचरण द्वारा प्रमाणित कर दिया। चक्रवर्ती के सभी लक्षण नल में विद्यमान थे। उसने सभी दर्शनों, शास्त्रों, विद्याओं, कलाओं, नीतियों, भाषाओं में गति प्राप्त कर ली। उसकी समता कोई नहीं कर पाता था रसे रसायने ग्रन्थे शस्त्रे शास्त्रे कलास्वपि। नले न लेभिरे लोकाः प्रमाणं निपुणा अपि॥४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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