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सार्वभौम-विजय के पक्ष में निर्णय करने में समर्थ हो सकता है, अपने कार्य से विराम ले लेता है।
दमयन्तीकथाचम्पू की कथा का आधार महाभारत के वनपर्व में वर्णित नलोपाख्यान है। कवि का उद्देश्य कथा कहना मात्र न होकर उसमें कलात्मकता का अभिनिवेश करना था। इसलिए उसने अपनी कृति को संवेदना के चरम-बिन्दु पर पहुँचा कर पूर्ण कर दिया है, चाहे वह कथा की दृष्टि से अपूर्ण ही रह गई दिखाई पड़ती हो।
दमयन्तीचम्पू शृंगारिक रचना है और इसमें प्रेम के औचित्य पर कवि की दृष्टि सर्वत्र केन्द्रित रही है। कवि ने नल और दमयन्ती के हृदय में उत्पन्न प्रेमवृत्ति को 'द्विज' के रूप में प्रस्तुत किया है क्योंकि उसका प्रथम अंकुर पथिक से गुणश्रवण करने पर उत्पन्न हुआ है और हंस के संदेश ने उसमें परिष्कृति ला दी है।३५ इससे प्रकट है कि कवि प्रेम की सर्व-सामान्य मनोवृत्ति को उदात्तीकृत रूप में प्रस्तुत करना चाहता था। उदात्तीकरण की इस प्रवृत्ति ने शृंगार और प्रेमोद्गार के कवि कालिदास को भारत का सांस्कृतिक-महाकवि बना दिया है। त्रिविक्रम भट्ट इस ओर दृष्टि निक्षेप करके भारत की जातीय विशेषता को अपने काव्य में संयोजित कर रहे थे। ___कवि ने न केवल भाव-चित्रण में ही औचित्य पर ध्यान दिया है अपितु घटना के संयोजन में भी उसका ध्यान इस ओर रहा है। भीम की पुत्रैषणा को दमनक मनि के आगमन और स्वप्नों की स्मृति से सार्थक गति मिली है। प्रेमांकुर उत्पन्न होने और उसके विकसित होने के लिए यथोचित घटनाओं का संयोजन किया गया है। पथिकों और दूतों आदि के आगमन और वार्तालाप के कारण कथा में नाटकीयता का समावेश हो गया है। बीच-बीच में स्वाभाविकता लाने के लिए कुछ सहज
और आकस्मिक घटनाओं की कल्पना की गई है, यथा-बन्दरी का पुत्र के साथ आगमन और वात्सल्य-प्रदर्शन, हंस-हंसिनी का साहचर्य, हस्तिमिथुन और चक्रवाक-चक्रवाकी की प्रेमकेलि आदि।
___ कवि ने चरित्रोपस्थापन में भी औचित्य का ध्यान रखा है। प्रेमवृत्ति का चित्रण करते हुए पात्रों को कामी और लम्पट के रूप में भी दिखाया जा सकता है; परन्तु दमयन्तीचम्पूकार उसके मर्यादित रूप पर ही ध्यान केन्द्रित करता है। तदनुकूल ही वह पात्रों का चारित्रिक विकास दिखाता है। दमयन्ती की लजीली प्रकृति और नल का काम-सन्तप्त होने पर भी चारित्रिक दृढ़ता औचित्य का ही परिणाम है। ___ अलंकारों का प्रयोग करते समय भी कवि ने औचित्य का ध्यान रखा है। दमयन्ती को वेदविद्या से उपमित करना औचित्य का ही परिणाम है। किन्नरी के गीत ग्राम्य-प्रभाव लिए हुए हैं; परन्तु वे प्रेमोद्दीपन के कारण होने पर भी अश्लील नहीं हो पाए। जहाँ हास-विलास की ओर कवि की दृष्टि जाती है वहाँ श्लेष से वह शील और चिंतन की उदात्तता की ओर भी संकेत किए बिना नहीं रहता। ऐसा ज्ञात होता है कि कवि ने श्लेषबंध को स्वीकार ही इसीलिए किया है कि उसे उद्दीपन के क्षणों में भी सामाजिक मर्यादा की ओर संकेत करने का पर्याप्त अवसर मिले। नल की
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