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________________ १७ सिद्धि प्रदान की जिससे कोई उसे देख न सके। राजा बड़ा दुःखी हुआ। श्रुतिशील ने उसे धैर्य धारण करने की सलाह दी और प्रयत्नशील होने की प्रेरणा दी। नल फिर भी अशान्त बना रहा। श्रुतिशील ने प्राकृतिक सौन्दर्य दिखा कर उसका मनोरंजन किया। रात्रि भी मनोविनोद में ही बीती। षष्ठ उच्छ्वास प्रात:काल सन्ध्या-वन्दन कर के राजा हाथी पर आरूढ़ होकर आगे चला। तापी नदी के किनारे राजा को एक पथिक मिला जिसने बताया कि, वह दमयन्ती का संदेश लेकर आया है। वह बाट देखती हुई इस मार्ग की ओर खुलने वाली खिड़की में बैठकर आपकी प्रतीक्षा कर रही है। पथिक ने नल को दमयन्ती की भोजपत्र पर लिखी हुई एक चिट्ठी भी दी। दमयन्ती ने इस चिट्ठी में अपनी उत्कण्ठा और कामवेदना का उल्लेख किया था। पत्र के भावों को समझ कर नल अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने दूत से अनेक प्रश्न किये। अन्त में दुपहर हो जाने से राजा विश्राम करने लगा। दैनन्दिन कार्य कर के वह इधर-उधर विचरण करने लगा। उसी समय दमयन्ती द्वारा प्रेषित किन्नर-दम्पती वहाँ आये। उन्होंने दमयन्ती की मुद्रिका और वस्त्रों का जोड़ा नल को भेंट किया। राजा ने कृतज्ञता प्रकट की और दमयन्ती से मिलने के लिए उत्कंठित हो गया। सन्ध्या हो गई। किन्नरी ने अनेक गीत सुना कर नल का मनोविनोद किया। किन्नर ने गीत के भावों का सम्बन्ध दमयन्ती से स्थापित किया। किन्नरी ने गीत के दोष बताये और दमयन्ती के गुणों को गीत में व्यक्त भावों से कहीं अधिक बतलाया। उसने दमयन्ती की समानता वेदविद्या से बतलाई। प्रात:काल आगे चलने पर हस्ति-दम्पती को क्रीड़ा करते हुए देख कर नल का प्रेमभाव और भी उद्दीप्त हो गया। विन्ध्याचल पार करके कुण्डिननगर पहुँच गया। राजा के सेनापति बाहुक ने यथास्थान पड़ाव डाल दिया। तम्बू तान दिये गये। दण्डपाशिक ने घोषणा की-'निषधराज नल आ गये। नल के रूप में भगवान् शंकर का आशीर्वाद लेकर स्वयं कामदेव ही आ गया ज्ञात होता है।' सप्तम उच्छ्वास महाराज भीम के राजभवन से एक वृद्ध प्रतीहार आया और नल को प्रणाम करके बोला'श्रीमन् ! कुण्डिननगर के लोग आपका स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। उधर विदर्भराज भीम आपसे मिलने के लिए आ रहे हैं।' नल ने भीम की अगवानी के लिए अपने परिजनों को आदेश दिया। घोड़े पर आते हुए भीम का उसने स्वयं आगे बढ़ कर स्वागत किया। दोनों एक साथ मुस्कराये। एक साथ दोनों ने एक दूसरे के प्रति नमन किया। दोनों गले मिले। अपरिमित स्नेह प्रकट किया गया। सिंहासन पर बैठ कर दोनों ने एक दूसरे से कुशल पूछी और भीम उसके आगमन को अहोभाग्य मान कर उसे सारा राज्य और जीवन तक समर्पित करने के लिए तत्पर हो गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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