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________________ १६ उन्होंने स्त्रियों और दुष्ट - सहायकों का विश्वास न करने की बात भी कही। सालंकायन की बातों का समर्थन राजा वीरसेन ने भी किया। I राजसभा ने नल को वय :- प्राप्त और सर्वगुणसम्पन्न देखकर उसके राज्याभिषेक का निश्चय किया । तदनुसार वीरसेन ने अविलम्ब राज्याभिषेक का उपक्रम किया । वहाँ एक मुनियों का दल आया, जिनके पास राज्याभिषेक के लिए आवश्यक सभी सामग्री विद्यमान थी। इसे शुभ शकुन मानकर राजा ने हर्षोल्लास के वातावरण में नल का राज्याभिषेक कर दिया। राजा पुत्र, बांधव और प्रजा से विदा लेकर वन में तप करने के लिए प्रस्थित हुआ । सालंकायन ने भी राजा और रानी का अनुगमन किया । नल पहले तो दुःखी हुआ फिर प्रजापालन के गुरुतरभार को उठाने में प्रवृत्त हो गया।" पञ्चम उच्छ्वास दमयन्ती की सखी ने दमयन्ती का भाव जानकर हंस से कहा - 'महानुभाव, आपकी कथा से हमारी तृप्ति नहीं हुई । इस विषय में कुछ और सुनायें ।' हंस ने नल के जीवन की अन्य अनेक घटनाओं का उल्लेख किया और अन्त में वहाँ से चलने लिए तैयार हो गया । दमयन्ती ने अपना कण्ठहार हंस के गले में डाल दिया। हंस ने कहा'सुन्दरी, इस मुक्तावली के बहाने नल के सामने आपके विषय में वर्णन का कार्य भी मैं ही करूँगा।' ऐसा कहकर वह वहाँ से उड़ चला। हंस के चले जाने पर दमयन्ती काम - ज्वर से पीड़ित हो गई। स्वास्थ्य लाभ के सारे उपचार उस पर व्यर्थ हो रहे थे । इधर हंस साथियों सहित निषधनगरी के उपवन में पहुँचा । वहाँ की सरोवरपालिका ने राजा हंस के आगमन का समाचार सुनाया। राजा ने आकर हंस का स्वागत किया और उसकी यात्रा विषय में पूछा। हंस ने सारी बात सुनाई और दमयन्ती के मुक्ताहार को नल को समर्पित कर दिया। अन्त में राजा की अनुमति लेकर हंस वहाँ से चल दिया । उसके जाने पर नल की दशा चिन्तनीय हो गई । दमयन्ती का भी यही हाल था । दमयन्ती की दशा देखकर भीम ने स्वयम्वर का आयोजन किया। कई राजाओं को आमन्त्रित किया गया । उत्तर की ओर जाने वाले दूतों से दमयन्ती ने श्लिष्ट पदावली में नल को अवश्य लाने के लिए कहा। भीम का निमन्त्रण पाकर स्वयंवर में भाग लेने के लिए अनेक राजा कुण्डिननगर में उपस्थित हो गये। राजा नल भी श्रुतिशील को साथ लेकर मार्ग के सौन्दर्य का दर्शन करता हुआ कुण्डिननगर प्रस्थित हुआ। मार्ग में नर्मदा तट पर राजा ने एक चक्रवाकी के प्रेमी अनेक चक्रवाकों को देखा। उसी समय वहाँ आकाश मार्ग से इन्द्र आदि लोकपाल आये । इन्द्र के सङ्केत से कुबेर ने कहा कि- 'हे राजन्, हम दमयन्ती के स्वयंवर में भाग लेने जा रहे हैं। आप हमारी ओर से दमयन्ती के पास दूत बनकर जायें और उससे कहें कि वह हम में से ही किसी का वरण करे।' देवों ने उसको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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