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विश्वास हो गया। आदर सत्कार किये जाने के उपरान्त मुनि राजा से बोले कि 'वे शंकर की आज्ञा से आये हैं और शंकर की कृपा से उसके यश का विस्तार करने वाली एक कन्या उत्पन्न होगी।'
पुत्र-कामना करने वाली रानी कन्या-जन्म की बात को सुनकर बड़ी दुःखी हुई। श्लिष्टवाक्यों से उसने मुनि की प्रशंसा के बहाने से निन्दा की। मुनि ने भी वैसा ही श्लिष्ट उत्तर दिया। अन्त में रानी ने मुनि से क्षमा मांग ली और मुनि को अनेक उपहारों से सम्मानित किया। मुनि ने उनमें से कुछ भी नहीं लिया और वे आकाश मार्ग से उड़ गये। ___कुछ समय बाद प्रियंगुमञ्जरी गर्भवती हुई और पूर्ण समय होने पर उसकी कुक्षि से कन्यारत्न का जन्म हुआ। इस समय सारे राज्य में उत्सव मनाया गया। दमनक मुनि के वरदान से उत्पन्न होने के कारण इस कन्या का नाम दमयन्ती रखा गया।
दमयन्ती अमृत से सींचे अंकुर की तरह बढने लगी और शीघ्र ही उसने विद्या और कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली। उसके शरीर में कालक्रम से यौवन का संचार हुआ। इस अनुपम सुन्दरी को प्राप्त करके कोई भी व्यक्ति धन्य हो जायेगा।
इतना कहकर हंस चुप हो गया। चतुर्थ उच्छ्वास
हंस की बातों से राजा को रोमाञ्च हो गया। उसे निश्चय हो गया कि दमयन्ती ही वह सुन्दरी है जिसके विषय में वह पहले पथिक से सुन चुका है। ऐसा सोचकर उसने उत्कण्ठित हृदय से हंस से कहा-'मित्र, आज के दिन आपके वचन सुनने को मिले। मैं सौभाग्यशाली हूँ। अब सन्ध्यावन्दनादि का समय हो गया है, इसलिये मुझे आज्ञा दें। आप सरोवर में विहार करें।'
हंस यह सोचकर कि कहीं राजा उसे फिर न पकड़वा ले, वहाँ से अपने साथियों के साथ उड़ चला। उड़ती हुई हंसों की पाँत विदर्भ देश में कुण्डिननगर के राजोद्यान के सरोवर के तट पर पहुँची। दमयन्ती की सहेलियाँ हंसों को पकड़ने लगीं। दमयन्ती ने थोड़े ही परिश्रम से उस हंस को पकड़ लिया। हंस ने दमयन्ती को नल को पति-रूप में पाने का आशीर्वाद दिया। दमयन्ती आश्चर्य में पड़ गई और उसने अनुमान लगा लिया कि पहले पथिक ने भी नल के सौन्दर्य का ही वर्णन किया था। उसने उत्कण्ठित होकर पूछा-'हंस किस नल की बात कर रहे हो?'
हंस बोला-"निषध देश के सम्राट् वीरसेन बड़े प्रतापी हैं। उनकी पत्नी का नाम रूपवती है। भगवान् शिव की कृपा से उन दम्पती के सर्वलक्षणसम्पन्न तेजस्वी बालक नल का जन्म हुआ। दम्पती को अतीव प्रसन्नता हुई। बड़ा होकर वह बालक रूप और यौवन से सम्पन्न हो गया। उसने सभी विद्यायें प्राप्त कर लीं। वीरसेन के मुख्यमंत्री सालंकायन का पुत्र श्रुतिशील नल का अभिन्न सखा है। एक बार नल ने राजा वीरसेन को तो प्रणाम किया, परन्तु सालंकायन को नहीं किया। इस व्यवहार से दु:खी होकर सालंकायन ने नल को राजधर्मविषयक अनेक महत्त्वपूर्ण बाते बताईं।
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