SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ द्वितीय उच्छ्वास वर्षा के बाद शरद् ऋतु आई। प्रकृति का रूप ही बदल गया। किन्नर-मिथुनों के गीतों के स्वर से नल के मन की उत्कण्ठा और भी बढ़ गई। वनविहार करते हुए उसने अपने सामने ही उतरती हुई हंसों की पाँत देखी। कौतुकवश नल ने उसमें से एक हंस को पकड़ लिया। हंस ने स्पष्ट शब्दों में राजा को आशीर्वाद दिया। उसकी निर्भीकता को देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया। उसने समझा कि हंस अवश्य ही पक्षी रूपधारी देवता है। अतः उसने हंस का स्वागत किया। हंस को पकड़ा हुआ. देखकर हंसपत्नी रोती हुई आती है और राजा को अनेक उलाहने देती है। नल ने भी श्लिष्ट-वचनों में उसे उत्तर दिया। हंस ने भी वार्तालाप में योग दिया। तभी आकाशवाणी हुई-राजन्, हंस को छोड़ दो। यह दमयन्ती को तुम्हारी ओर आकृष्ट करने में सहायक होगा। दमयन्ती का नाम सुनकर नल रोमाञ्चित हो गया। उसने हंस से दमयन्ती के विषय में जानकारी चाही। बोला-कल्याणमित्र! यह दमयन्ती कौन हैं? कैसी सुन्दरी है? और इसका जन्म कहाँ हुआ है? हंस बोला-राजन्, गोदावरी के प्रवाह से पवित्र दक्षिण देश है। उसका महत्वपूर्ण भाग विदर्भमण्डल है, जिसमें अत्यन्त शोभाशाली कुण्डिन नाम का नगर है। वहाँ का राजा भीम है। नारी श्रेष्ठ प्रियंगुमञ्जरी उसकी पत्नी है। इनके कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन वन-विहार करते समय बन्दर के बच्चे को देखकर अपनी सन्तानहीनता पर बड़ी दुःखी हुई। अन्त में राजा और रानी ने भगवान् शंकर की उपासना करने का संकल्प किया। पति की आज्ञा से रानी शंकर की भक्ति में तल्लीन हो गई। तृतीय उच्छास रात्रि में प्रियंगुमञ्जरी ने स्वप्न देखा कि भगवान् शंकर उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गए हैं। चन्द्रमण्डल से उतरकर शंकर ने कहा-वत्से, लो यह पारिजातमञ्जरी। डरो मत। मेरी आज्ञा से दमनक मुनि आयेंगे और तुम्हें अनुगृहीत करेंगे। रानी ने भगवान् का प्रसाद - पारिजातमञ्जरी ले ली और उनकी स्तुति करने लगी। इतने में प्रात:काल हो गया और उसकी नींद खुल गई। प्रात:काल संध्या वन्दन कर के पुरोहित सहित राजा भीम अपनी पत्नी के पास पहुंचे। रानी में इस दिन विशेष दीप्ति दिखाई पड़ रही थी। राजा ने इस नवीनता का कारण पूछा तो रानी ने सारा स्वप्र का वृत्तान्त सुना दिया। राजा ने बताया कि उसने भी स्वप्न में कार्तिकेय और गणेश के साथ शिव-पार्वती के दर्शन किए हैं। पुरोहित ने स्वप्न का फल बतलाया कि 'यशस्वी सन्तान होगी'। इसी समय आकाश से एक मुनि उतरे। ये तेजस्वी दमनक मुनि थे। अब राजा और रानी को स्वप्नों की सच्चाई के विषय में पूरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy