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अधिकार है। तभी प्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हुए भी श्लेष का निर्वाह करने में कवि को सफलता मिली है। चम्पू की सच्ची सामर्थ्य त्रिविक्रम के दमयन्तीचम्पू द्वारा ही व्यक्त हुई है। सभी दृष्टियों से दमयन्तीचम्पू को एक सफल चम्पू-काव्य माना जा सकता है ।
दमयन्तीकथाचम्पू-कथासार
प्रथम उच्छास
दमयन्तीचम्पू के प्रारम्भ में कवि त्रिविक्रम भट्ट ने चन्द्रशेखर भगवान् शंकर तथा अमृतवर्षी कवियों के वाग्विलास की शुभाशंसा की है। तदुपरान्त संसार को उत्पन्न करने वाले कामदेव और विद्वानों के आनन्द-मन्दिर सरस्वती के मधुर प्रवाह को नमस्कार किया गया है। आगे असत् उक्तियों तथा अभद्र गोष्ठियों की निन्दा और सूक्तियों तथा सत्कवियों की प्रशंसा की गई हैं।
कवि ने सभंगश्लेष से सम्पन्न उक्ति-वैचित्र्य की ओर अपनी रुचि दिखाते हुए अपने वंश का परिचय दिया है। इस प्रसङ्ग में आगे मातृभूमि आर्यावर्त की महिमा का गान भी हुआ है, जिसमें निषधा नाम की नगरी है। यह नगरी समग्र सामाग्री से मण्डित होने के कारण स्वर्ग की सुषमा से स्पर्धा करती है। निषधानगरी में अत्यन्त प्रतापी राजा नल रहते हैं। उनके मन्त्री का नाम श्रुतिशील है। वह समस्त विद्याओं का आधार स्तम्भ और नल का द्वितीय प्राण ही है। नल अपना सारा कार्यभार मंत्री पर छोड़कर विहार, आखेट, विनोद-गोष्ठी आदि में लीन रहता है।
वर्षाकाल में एक बार वनपालक ने राजा को सूचना दी कि विहार- वन में कोई भयंकर सूकर आ गया है। यह सुनकर राजा उसका शिकार करने के लिए उत्कण्ठित हो गया। सेनापति बाहुक ने शिकार का प्रबन्ध कर दिया। वह एक घोड़े पर बैठ कर चला। वन में उसकी मुठभेड़ सूकर से हुई। अन्त में नल ने उसे पराजित कर दिया। राजा थक कर विश्राम करने लगा। उसी समय यहाँ एक पथिक आया। उसने राजा की मंगल कामना की और राजा से अभिनन्दन किये जाने पर पथिक ने कहा कि 'वह दक्षिण दिशा में स्थित श्रीशैल पर्वत पर स्वामी कार्तिकेय के दर्शन करने गया था। वहाँ से लौटते समय एक बरगद के नीचे विश्राम कर रहा था कि वहाँ एक अद्भुत सुन्दरी राजकन्या आई। उसके सौन्दर्य और अतिमानवीय सौभाग्य का वर्णन करना असम्भव है। उस कन्या को एक उत्तर से आने वाले पथिक ने बताया कि, कामविजयी राजा को देखने वाली
आँखें धन्य हैं और तुम भी काममञ्जरी के समान हो। वह राजा तुम्हारे लिए उपयुक्त है। ऐसा कथन सुनकर मैं भी उत्कण्ठित हो गया, परन्तु उस कन्या का नाम मुझे ज्ञात नहीं हो सका।'
पथिक की बातें सुनकर राजा कामज्वर से पीड़ित हो गया। वह उस सर्वातिशायिनी सुन्दरी को देखने के लिए उत्कण्ठित हो गया। राजा ने उस पथिक को विविध उपहार देकर सम्मानित किया। वहाँ से वापस अपने राजभवन में लौट आने पर भी उसके मन में उदासी ही छाई रही। वर्षाकाल उसने पथिकों से उस सुन्दरी के विषय में समाचार पूछते हुए ही बिताया।
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