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है। केवल बीच-बीच में जो छन्द प्रयुक्त हुए हैं वे कई प्रकार के हैं, आर्या, वक्त्र या अपवक्त्र मात्र ही नहीं।
दमयन्तीचम्पू की कथा सात उच्छ्वासों में विभाजित है। प्रत्येक उच्छ्वास के अन्त में 'हरचरणसरोजाङ्क' आया है। यह अलंकृत-शैली की उत्कृष्ट रचना है। श्लिष्ट-पद-बन्ध में त्रिविक्रम भट्ट सुबन्धु से भी आगे बढ़ गये हैं। इस प्रकार इस रचना में गद्य-पद्य-मिश्रित होने के साथ चम्पू-काव्य के कुछ विशिष्ट लक्षण भी मिलते हैं। गद्य-पद्य का मिश्रण चम्पू को एकरसता से बचाता है। इसीलिए दमयन्तीचम्पू अत्यन्त सरस रचना हो गई है।
यह एक उत्कृष्ट प्रबन्ध-काव्य है। भारवि और माघ ने छोटे से कथानक को लेकर उसे प्रभूत-विस्तार देते हुए अलंकृत शैली में महाकाव्य लिखने की परम्परा चलाई थी। उसी परम्परा में दमयन्तीचम्पू को समझना चाहिए। प्रेम की सदाशयता और उदात्तता का उत्कृष्ट चित्र उपस्थित करना ही कवि का प्रमुख उद्देश्य रहा है। इसलिए उसने अपने काव्य का मुख्य रस शृंगार माना है। डॉ. भोलाशंकर व्यास के अनुसार चम्पू-काव्यों का सम्बन्ध जितना शैली से है उतना विषय से नहीं।२९ यद्यपि त्रिविक्रम भट्ट ने दमयन्तीचम्पू में समास-प्रधान उत्कृष्ट शैली का उदाहरण प्रस्तुत किया है, परन्तु विषय की दृष्टि से भी यह उच्चकोटि की रचना है। दमयन्तीचम्पू में दमयन्ती की उक्ति है
भूपालामन्त्रणे तात तथा सञ्चार्यतां यथा।
नलोप्यागमबुद्धिः स्यात् प्रार्थ्यसे किमतः परम्॥३० इसके उत्तर में ब्राह्मण का उत्तर है
करिष्याम्यागमस्यार्थे रभसेन नलंघनम्॥३१ इस श्लिष्ट पदावली को दमयन्तीचम्पू पर घटित करके कहा जा सकता है कि नल की उदात्त प्रेमकथा का आश्रय लेने पर भी कवि ने आगमबुद्धि का कहीं लोप नहीं होने दिया है।
दमयन्तीचम्पू में गद्य की मात्रा अधिक है। पद्यों का प्रयोग यथावसर किया गया है। ये अवसर वे हैं जब अत्यधिक संवेदनशील होकर कवि पद्य के अतिरिक्त अपने भावों को प्रकट ही नहीं कर पाता। पद्य में भावलहरियों को छन्दित किया जा सकता है गद्य में नहीं। इसलिए पद्यप्रयोग में स्वाभाविकता का होना त्रिविक्रम भट्ट की बहुत बड़ी सफलता है। गद्य और पद्य दोनों दमयन्तीचम्पू में अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार कथा-सूत्र को आगे बढ़ाने में सहायक हुए हैं। एक विशेषता इस चम्पू में यह भी है कि गद्य में वर्णित भावों की पुनरावृत्ति पद्य भाग में नहीं हो पाई है, जैसी कि अन्य चम्पू-काव्यों में मिलती है। इससे पद-पद में नवीनता, जो कि रमणीयता का लक्षण है, दिखाई पड़ती है। यह सोद्देश्य रचना है।
वर्णन-विस्तार की ओर कवि की रुचि विशेष रही है, परन्तु ऐसा करके कवि ने रसात्मकता
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