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________________ गद्यः प्रत्येकपधान्तैः चतुभिर्वर्णयेत् क्रमात्। अवधित्वेन पूर्वादि चतुर्दिक्सीमपर्वतान्॥ ततः सप्तविभक्त्यङ्गैः सप्तभिर्गौडरीतिकैः। पद्य-गद्यद्वयं सर्वे जनाः शृणुत मद्वचः॥ शौर्यादिगुणवानेष एवेति भुवि घुष्यताम्। घुष्यतामिति शब्दान्तैर्नेतुः शौर्यादयो गुणाः॥ घुष्यन्ते यत्र साटोपं सा भवेजयघोषणा। अस्यामाद्यन्तयोः कार्यं पद्यमाशी: समन्वितम्॥ दिशि यस्यामयं नेता तामारभ्यैव घोषयेत्। नेतुर्नामाङ्कितः श्लोको नायकोऽत्र महीपतिः॥ आज्ञापत्र या दानपत्र-ताम्रपत्रों या शिलालेखों में अङ्कित मिश्रितशैली के दान-पत्र या आज्ञापत्र काव्यात्मक छटा लिए हुए होने से पृथक् विधा के रूप में परिगणित किये गये हैं। चम्पूकाव्य मिश्रितशैली का होते हुए भी अपने विशिष्ट गुणों से ही पृथक् विधा के रूप में स्वीकृत हुआ है। चम्पू शब्द चुरादिगण को 'चपि' धातु से व्युत्पन्न है-'चम्पयति चम्पति इति वा चम्पूः।' 'चपि' धातु गत्यर्थक है। गति, गमन, ज्ञान, प्राप्ति या मोक्ष अर्थों की सूचक होती है। इससे जो रचना मोक्ष-सहोदर आनन्द प्राप्त कराये उसको चम्पू कहते हैं ।२१ हरिदास भट्टाचार्य ने चम्पू की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-'चमत्कृत्य पुनाति सहृदयान् विस्मितीकृत्य प्रसादयति इति चम्पू:।' इससे यह सिद्ध होता है कि चम्पू-काव्य की रचना में चमत्कार-प्रियता विशेष रूप से देखी जाती है। सर्वश्रेष्ठ चम्पूकाव्य दमयन्तीचम्पू से यह बात भली प्रकार सिद्ध हो जाती है। चम्पू की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार है गद्यपद्यमयी काचिच्चम्पूरित्यपि विद्यते।२२ गद्यपद्यमयी साङ्का सोच्छ्वासा चम्पू:।२३ हेमचन्द्र ने कदाचित् चम्पू का लक्षण दमयन्तीचम्पू को दृष्टि में रखकर ही किया है क्योंकि साङ्क और सोच्छ्वास होने का लक्षण उसमें तो मिल जाता है, परन्तु संस्कृत के अन्य बहुसंख्यक चम्पूकाव्यों में नहीं मिलता। अन्य चम्पू साङ्क भी नहीं है और उनका विभाजन भी स्तबक, उल्लास, काण्ड, तरङ्ग, सर्ग, विलास, मनोरथ, परिच्छेद आदि में नहीं है। अतः यह मानना होगा कि चम्पूकाव्य के स्पष्ट लक्षण निर्धारित नहीं हो पाये। चम्पू गद्य-पद्य-मिश्रित होने के साथ सबन्ध हैं, सालंकृत हैं और रससिक्त हैं। अत: चम्पूकाव्य का यह लक्षण उपयुक्त ज्ञात होता है गद्यपद्यमयं सर्वं सबन्धं बहुवर्णितम्। सालंकृतं रसैसिक्तं चम्पूकाव्यमुदाहृतम्॥२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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