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________________ त्रिविक्रम की एक अन्य रचना 'मदालसा चम्पू' कही जाती है। यह भी प्रणय-गाथा है। इसमें नायक कुवलयाश्व और नायिका मदालसा है। काव्यसौष्ठव और भाषागत प्रौढ़ता की दृष्टि से यह कृति दमयन्तीचम्पू के सामने फीकी दिखाई पड़ती है। सम्भव है यह त्रिविक्रम भट्ट की प्रारम्भिक कृति हो। प्रो० कैलासपति त्रिपाठी१३ ने निम्न कारणों से मदालसा चम्पू को शाण्डिल्यगोत्रज नेमादित्यपुत्र त्रिविक्रम भट्ट की रचना नहीं माना है१. दमयन्तीचम्पू की तरह ग्रन्थारम्भ में कवि ने वंश-परिचय नहीं दिया। २. दमयन्तीचम्पू की विशेषता है-श्लेषबन्ध। मदालसा चम्पू में श्लेष का विशेष प्रयोग नहीं हुआ। दमयन्तीचम्पू के उच्छ्वासों के अन्त में हरचरणसरोज का अङ्क दिया हुआ है, मदालसा चम्पू में ऐसा कोई अङ्क नहीं है। ४. दमयन्तीचम्पू का विभाजन उच्छ्वासों में हुआ है जब कि मदालसा चम्पू का उल्लासों में। ५. दमयन्तीचम्पू में प्रारम्भ में श्लिष्ट शब्दार्थ-योजना का सङ्कल्प किया गया है। मदालसा चम्पू में ऐसा नहीं हुआ। न वह कठिन रचना ही है। यद्यपि मदालसा चम्पू के रचनाकार त्रिविक्रम भट्ट थे या नहीं इस विषय में इदमित्थं नहीं कहा जा सकता, परन्तु केवल उपर्युक्त कारण ही किसी स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं हैं। नवीनता की दृष्टि से एक कवि की दो रचनाओं में विभाजन की शैली और वर्णन में भेद हो सकता है। वंश-परिचय स्थायीकीर्ति की कारणभूता रचना में देना कवि को रुचिकर लग सकता है। साङ्क-लेखन की बात भी कवि को बाद में सूझ सकती है। श्लेषबन्ध में सुबन्धु की कीर्ति को भी तिरस्कृत कर देने वाला कवि सरलशैली की रचना करके अपनी सामर्थ्य का दूसरा पहलू भी प्रकट कर सकता है। इन सभी संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए मदालसा चम्पू में किसी अन्य रचयिता के विषय में धारणा बना लेना उचित नहीं ज्ञात होता। जब तक अन्य प्रमाण नमिलें तब तक इस चली आती हुई मान्यता को अस्वीकार करने में कोई कारण नहीं है कि 'मदालसा-चम्पू' त्रिविक्रम भट्ट की ही रचना है। किन्तु काव्य की इस अपेक्षाकृत विधा को प्रौढ़ता के चरम बिन्दु तक पहुँचा कर उनको पथिकृत् महाकाव्य के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली रचना दमयन्तीचम्पू ही है, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता। चम्पूकाव्य का स्वरूप कवि की कृति ही काव्य है। कवि अपने संवेदनशील हृदय से देश और काल की प्रेरणा को अनुभव कर लेता है और उसे स्मरणीय रूप में अभिव्यक्ति देता है। वह इन्द्रियग्राह्य-सौन्दर्य को मानस-ग्राह्य बना देता है। कवि-कर्म को 'रसात्मक वाक्य'१४ या 'रमणीयार्थ प्रतिपादक-शब्द'१५ से परिभाषित काव्य कहा जाता है। कवि अभिव्यक्ति के लिए मनुष्य की सौन्दर्यानुभूति के दो प्रमुख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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