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________________ १२७ ७६. सुद्धि क्रिया जेहनी जगि कहीये, ते खरतरगच्छ पुण्यइ लहीयइ। तसु प्रभु श्रीजिनसिंहसूरि राजइ, दस दिसि जेहनउ सुजस विराजइ ॥ २३४ ॥ संवत सोल तिहत्तरा वरसइ, श्रावण सुदि नवमीनइ दिवसइ। नवमइ रवियोगइ शनिवारइ, पूर्व-प्रबन्ध तणइ अनुसारइ ॥ २३५ ॥ श्रीपदमप्रभ जिनहर मंडित, जेहनी आन्या अछइ अखंडित। जिहां बहु श्रीजिनकुसलनी सोभ, जिणि कीधी खरतरगच्छ थोभ ॥ २३६ ॥ श्री सांगानयरइ जिहां श्रावक, खरतर उदयवंत सुप्रभावक। गुरुमुखि जे श्रुत सुणिवा तरसइ, जलधर जिम जे घनजल वरसई ॥ २३७॥ साहिसभा महि जिण जस लीधउ, प्रतिवाद्यांनइं उत्तर दीधउ। पाटइ विजयमान मनु सोभ, उवज्झाय श्रीधर जयसोम ॥ २४०॥ पाठक गुणविनयइ तसु सीसइ, प्रगट कीयउ जसु कउन सरीसइ। श्रीकलावतीय चरित सुनिधान, जेहनउ अछइ अधिक जगिवान ॥ २४१ ॥ ७७. गुण-मुनि-रस-ससि (१६७३) वरसइ चारु, मूलदेव संबंध विचारु। श्रीसांगानयरइ मन हरसइ, जेठ प्रथम तेरसिनइ दिवसइ ॥ १६७ ॥ भृगुवारइ सिधयोग उदारइ, पूर्व प्रबन्ध तणइ अनुसारइ। श्रीपदमप्रभ पुण्य पसायइ, राजमानि जिनसिंहसूरि राजइ ।। १६८॥ उवझाय श्री जयसोमनइ सीसइ, आन्या माल धरि निज सीसइ। उवझाय श्री गुणविनयइ बंधुर, प्रभण्यउ धरि धरमा मइए धुर ॥ १६९ ॥ श्रीमाली महि परगट पापड, वेणीदास ध्रमरागीजी। अरहंत देव सुगुरु पय सेवा, करिवा जसु मति जागी जी ॥ १२१० ॥ तसु जिणदास वृद्ध सुत तसु सुत, मदनसिंह इण नामइंजी। गरुअउ धन-संबंध कराविवा, वीनति करीय सुठामइ जी॥ १२११॥ तेहनइ आग्रहइ संघ सहुनइ, सुणिवा हूअ उमाहा जी। विणु प्रयासि नवि वंछइ कहउ, कुण एहवा पुण्य ना लाहा जी ।। १२१२ ॥ तसु पटि विजयमान जिनसिंहसूरि युगप्रधान पद लाधउ जी। जिणि जहांगीर साहि थी साचउ, दिनि दिनि तेजइ वाधउ जी॥ १२१७॥ अकबर. साहि सभा महि जेहनउ, सुजस थयउ असमानो जी। श्री जयसोम महा उवझाया, शास्त्रविचारि सवाया जी॥ १२१८ ॥ तसु सीसइ सदगुरु आसीसइ, श्रीगुणविनयइ हरसइजी। सोलहसइ चउहत्तरि वरिसइ, कार्तिक पूनिमि दिवसइजी ॥ १२१९ ॥ श्री जहांगीर साहिनइ राजइ, आगरा नगरि विराजइ जी। धन्ना शालिभद्र जे परसिध, जगि तेहनउ सुख काजइ जी॥ १२२० ॥ ए सम्बन्ध अमृत सम देखि, दुइ सहसु परिमाणइ जी। पूरव पुण्यनइ पूरइ पूरउ, जेह चढ्यउ सुप्रमाणइ जी ॥ १२२१ ॥ श्री जिनदत्तसरि सकल कसलकर श्री जिनकुशल प्रसादइजी। अविचल निर्मल विमल जिनेश्वर सांनिधि लही अप्रमादइजी। मगसिर दसमीयइ दसमइ, रविवर योगइ मननइं रागइजी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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