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________________ १२६ विजयमानि श्रीजिनसिंहसूरि, आचारिज पद साहि हरि ॥ २०० ।। श्री जयसोम महा उवझाय, वचन रसइ रंजिय नरराय ॥ २०२ ॥ अकबर साहि सभामइं जासु, दस दिसि हुअउ. विजय विकासु। तासु शिष्य दुइ अछइ विनीत, गुणविनय विजयतिलक सुवदीत ॥ २०३ ।। तिहां वाचक गुणविनयइ दीठउ, पूर्व प्रबंध जिसउ मधु मीठउ। सोलहसइ बासट्ठा बरसइ, चैत्र सुदि तेरसिनइ दिवसइ ।। २०४॥ ७०. संवत सोल पंचावन वरसइ, श्राविका जीउ निय मन हरसइ। श्रीगुणविनय वाचकवर पासइ, सुणीउ आगम मनि उलासई ॥ ५५ ॥ कीधउ बारह व्रत उच्चारह, अणजाणइ नही दूषण भार। भणसइ गुणसइ एह अधिकार, तेहि घरि मंगल जयकार ॥ ५६॥ ७१. संवत गुणरसरसससि वरसई (१६६३) चैत्र सुदइ नवमीनइ दिवसइ ॥ २६२ ॥ नवमइ रवियोगइ वहमानइ, रविमेषइ रविवारि प्रधानइ। श्रीखंभायति थंभण पास, धरण पउम परतखि जस पासि ॥ २६३॥ श्रीखरतरगण गगननभोमणि, अभयदेवसूरि प्रकटित सुरमणि। धन खरची बहुबिंब भराविय, साह शिवा सोमजीय कराविय ॥ २६४ ॥ युगप्रधान जिनचंद्रसूरि राजइ, श्रीजिनसिंघसूरि करि राजइ ॥ २६६ ॥ श्रीजयसोम सुगुरुनइ सीसइ, आज्ञा कुसुममाला धरि सीसइ। वाचक गुणविनयइ गुणकारण, ढालबंधि प्रभण्यउ भवतारण ॥ २६७॥ ७२. अम्बुधि-काय-रसावनि १६६४ बरसइ, श्रीसंघ केरइ हरखइ जी॥ २४५ ॥ उवझाय श्री जयसोम सुगुरुनइ, सीसइ मति अनुसारीजी। श्री वाचक गुणविनयइ. प्रभण्यउ, राजनगरि सुखकारीजी॥ २४७॥ ७३. बाण-काय-दरसन-ससि वरसइ (१६६५), श्रीनवानगर पवरि मन हरसइ॥ १३६ ॥ गुणविनय वाचक गुण जल वावि, श्रीजिनकुशलसूर अनुभावि॥ १३९॥ . ७४. इण विधि गुणनिधि श्रीदवदंती, चरित भण्यउ भववनदवदंती। सोलहसइ पइसट्ठि वरषि, श्रीनवानगर पवरि मन हरषि॥ ३४४ ॥ आसूवदि छठि ससधर वारइ, मृगसिर सिद्धि रवियोग उदारइ॥ ३४५ ॥ उवझाय श्री जयसोम सुधाकर, सीसइ मोहतिमिर भर-दिनकर। श्रीगुणविनयइ शीलनी लीला, देखि न हुवइ जिण थी हीला ॥ ३४६ ॥ ७५. धन धन बाहडमेरु कहाणा, जहां श्री सुमति सुहाणा वे॥ ९९७ ॥ सत्तरि अधिक सोलसइबरसे, वधतइ मन कहइ हरषइ वे॥ १०००॥ युगप्रधान जिनचंदसूरि राजइ, अधिक दिवाजइ विराजइ वे ॥ १००१ ।। श्री जयसोम महा उवझाया, जिनका लहिय पसाया वे॥ १००३ ॥ श्रीगुणविनयइ ए परबंध, प्रभण्या सुभ संबंधा वे॥ १००४ ॥ श्रावण सुदि दसमी कविवारइ, राधा उडु संचारइ वे ॥ १००५ ॥ श्रीजिनकुशल धुंभ जिहां जाचा, द्यइ मन वंछित वाचा वे॥ १००७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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