SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२५ बुधकृतमंगललीलं क्रोडीकृतसाधकं ध्यात्वा ॥२॥ श्रीजिनसिंहमुनीन्द्रं चन्द्रप्रतिमं कुमुदविकाशकृते। समुपश्लोक्य कृपालुं प्रणमद्भूपालभूपालम्॥ ३॥ मंगलाचरण ६१. रसबाणदर्शनेन्दुप्रमिते १६५६ वर्षे वलक्षमधुपक्षे। विक्रमनृपतोऽष्टम्यां शनिवारे पुष्यनक्षत्रे ॥ ५ ॥ श्रीतोसामपुरे वरवांछितदानप्रधानसुरवृक्षे। श्रीमन्त्रिराजकारित जिनकुशलस्तूपसुरवृक्षे॥६॥ प्रशस्ति ६२. अथ ग्रन्थे कतिचिल्लौकिकरूढ्यापि सन्ति नामानि। न च यत्र शब्दशास्त्रापेक्षार्थे हार्दमत्र कवेः॥६॥ मंगलाचरण ६३. तेषामादेशवशाद् वृत्तिमिमां समदृभद्वरां सुगमाम्। वाचक-गणि-गुणविनयो यथामति परहितहेतोः॥ १॥ प्रशस्ति इति श्रीवाचनाचार्य श्रीप्रमोदमाणिक्यगणिशिष्य-श्रीजयसोमोपाध्यायशिष्य-वाचनाचार्य श्रीगुणविनयैः श्रीबिल्वतटपुरे सं० १६५९ वर्षे युगप्रधानश्रीमज्जिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये आचार्यश्रीजिनसिंहसूरि-पल्लवितसाधुसाम्राज्यप्राज्ये विरचितेयं श्रीशान्तिस्तववत्तिः। (प्रशस्ति) बृहृवृत्ति-लघुवृत्तिविलोक्य (प्रशस्ति) ६५. पद्य २५ की व्याख्या - ६६. "श्रीजयसोमोपाध्यायशिष्यवाचकश्रीगुणविनयैः श्रीलाभपुरे कृतम्।" प्रशस्ति ६७. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि राजइ, गुरु अतिसय करि अधिक विराजइ। वेद बाण रस ससधर १६५४ बरसइ, नेमिजनम कल्याणक दिवसइ॥ १६९ ॥ वाचक श्रीगुणविनय विसेषि, ठाणावश्यक विवरण देषि। एह संधि प्रभणइ सुखकाजइ, महिमपुरइं महिमा करि राजइ ॥ १७१ ॥ जिहां श्री अजित शांति गुणभरिया, जाणे चंद सूर अवतरीया। भव्य जीवना तमभर हरिवा, जन आणंद रयणि दिनि करिवा॥ १७२।। - प्रशस्ति ६८. सोलहसइ पंचावन तणइ, गुरु अनुराधा योगइ रे। माह वदी दशमी दिनइ, मंत्री वचन प्रयोगइ रे॥ श्री० २९३ ॥ राज करमचन्द्र मंत्रवी, सधरनगर तोसामइ रे। संभवनाथ पसाउलइ, जिहां सवि वांछित पामइ रे॥ श्री० २९४ ॥ जिहां जिनकुशल सुगुरु तणो, करम मंत्री करायो रे। थूभ सकल संपत्ति करइ, दिनप्रति जे जसवायो रे॥ श्री० २९५ ॥ पाठक श्रीजयसोमजी, सुगुरु जिहां चउमासइ रे। श्रीसंघनइ आग्रह थकी, निवस्या चित्त उल्लासइ रे॥ श्री० २९६ ।। तसु आदेश लही करी, देखी वंस प्रबन्धो रे। वाचक श्रीगुणविनय कीयो, एह सरस संबंधो रे ॥ श्री० २९७ ॥ प्रशस्ति ६९. श्रीखरतरगछि प्रगट पडूरी, युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy