SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ ३१. श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीमुखई, श्राविका कोडां एह । आदरइ बारह व्रत इसा, शुभ दिवस रे मन हर्ष धरेय ॥ १८ ॥ सोलहसइ सैताल समइ, वैशाख सुदि दिन तीज। इम ढाल बंधइ गुंथिया, श्रावक व्रत रे जिह समकित बीज ॥ १९ ॥ जिनदत्तसूरि गुरु सानिधइ, जिनकुशलसूरि सुपसाइ। जयसोम गणि इणि पर कहइ, सुभ भावइ रे दिन दिन सुख थाइ॥ २०॥ दूसरी प्रति में 'श्राविकां कोडां एह' के स्थान पर 'श्राविका लाछल देवि'। ३२. आवश्यक अनुसारि चरित इणि परि कहयउ रे। उपसम रस संवेग सुधारस करि भस्यउ रे॥ १४२ ॥ सोलहसय गुणसट्ठिहि वच्छरि श्रावणइ रे। नेमि जनम दिन जांणि हीयइ हरषइ घणइ रे॥ १४४॥ जोधनयरि जयसोम सुगुरु गुण संथुणइ रे। वाचक श्रीपरमोद प्रसाद थवी भणई रे॥ १४५ ॥ राजइ जुगवर श्रीजिनचन्द्रसूरीसनइ रे। भणतां कुसलसूरीस करइ सुख दिन दिनइ रे॥ १४६ ॥ ३३. क्रमांक १२ से १५ के पाँचों स्तोत्र ‘पौषधषट्त्रिंशिका' में प्रकाशित हो चुके हैं। ३४. खण्डप्रशस्ति टीका प्रशस्ति पद्य ८ ३५. दमयन्तीचम्पू टीका प्रशस्ति पद्य १२ ३६. दमयन्तीचम्पू टीका प्रशस्ति पद्य ११ ३७. “गुणविनयगणिश्च चम्पू-रघुवंश-खण्डप्रशस्ति-नेमिदूत-वैराग्यशतक सम्बोध-सप्ततिकादिग्रन्थविवरणकर्ता, समयसुन्दरगणिश्च राजानो ददते सौख्यं, इत्येकपदस्य येन भूयांसोऽर्थाः प्रतिपादितास्तौ वाचनाचार्यों कृतौ।" कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तन काव्य टीका पद्य ४६२। ३८. जिनविजयः प्राचीन जैनलेख संग्रह भा० २ लेखांक १९ ३९. हिसार-महिम-जेसलमेरेषु चर्चाश्रमेण विख्याताः॥ ७॥ श्रीचन्द्र-मन्त्रिदेवा सारणदासादिविबुधसामग्र्या। नानाग्रन्थविचारा व्याख्याकरणाच्च संयत्य ॥ ४॥ खरतर-सामाचारी-विचारण-प्रवण-मानसैः सद्भिः। सूजा-मेघोदयकर्ण-डूंगराद्यैः परिश्रमिताः॥ ६॥ ४०. अणहिल्लपत्तन-जेसलमेरुस्थितसमयकोशवीक्षायाः। समवसितगोप्यगम्भीरा भावश्रुतनिकरसञ्चाराः॥ ५॥ ४१. विक्रमतो मुनिशररसशशिमाने (१६५७) वत्सरे विजयमाने । गुणविनयस्तच्छिष्य: सेरुणानाम्नि वरनगरे ॥ ११ ॥ ४२. "श्रीजयसोमोपाध्याय-शिष्य-श्रीवाचनाचार्यश्रीगुणविनयगणिभिः स्वहुण्डिका पुस्तकबीजकं विदधे मेदिनीतटे। श्रीरस्तु। संवत् १६५२ श्रीमेदिनीतटे।" ४३. विधुवारिधिरसशशिधरमितवर्षे (१६४१) विक्रमार्कभूभर्तुः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy