SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ नहनीरहिरसससहरवरिसे लहिऊण उवएसं ॥ ३५ ॥ २१. चन्द्राब्धिसच्चन्द्रकलामिताब्दे (१६४१) समर्थिता वृत्तिरियं सुखेन ॥ १॥ २२. लिहियं सिहिजलनिहिगुहमुहविहिवरिसे (१६४३) सुहरिसेणं ॥ ३५ ॥ २३. स्वोपज्ञस्य विवरणं कृतवानिह पौषधप्रकरणस्य । भूताब्धिरसेन्दुमिते ( १६४५) वर्षे श्रीनेमिजन्मदिने ॥ ५ ॥ २४. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य टीका पद्य ४६२ २५. 44 इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य दिखाते हुए ग्रन्थकार ने उपोद्घात में लिखा है'श्रीअहम्मदाबाद मांहे श्रीजेसलमेरु वास्तव्य बोहरा गोत्रीय साह सूजइ संवत् १६२९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने अम्हारा गुरु वाचनाचार्य श्रीप्रमोदमाणिक्य गणि ने श्रीमुखि अम्हज समीपि चर्चा करी, १६ श्रावकां साथि समझी श्रीजिनप्रतिमा महामहोच्छव पूर्वक जुहारी । पछइ वली ४८ बोल श्रीखरतरगच्छं सामाचारी ना सर्वगच्छना गीतार्थ यतियां नई सिद्धांत नई न्यायें पूछी तथा चर्चा करी, ऋषि मेघजी प्रमुख २८ लुंका यतियां साथि श्रीखरतरगच्छनी सामाचारी सर्वशास्त्रसम्मत जांणी आदरतां थकां लुंकाऋषि मेघजीनइ पोथानइ मलइ लुंका श्रावकां ३५ साथि पोथाना झगड़ा करवानइ निमित्ति तपेई झगडाना बोल कबूल की थकइ श्रीखरतरसंघनायक सत्यवादी श्रीसारंगधर मुहंतइ निषेधतां लुंका ऋषि मेघजी २८ ठाणइ तपा मांहि गया। पछइ १६ श्रावकां साथि श्रीखरतरगच्छनी सामाचारी बहरइ सूजइ आदरी । हिवे तेह बहरा सा० सूजाना पुत्र सा० राजसी तिणइ पुणि चर्चा करी श्रीजिनप्रतिमा जुहारीनइ श्रीखरतरगच्छनी सामाचारी भावई आदरी खरतर थयां। पछी मुलतान मांहि किण एकइ मेलि खरतर श्रावकां साथि मन अणमिलतां तपा श्रावकांनइ आदरइ अणचर्च्या खुणसइ तपानी सामाचारी मुलतान मांहि ते भइयइ आदरी । पछी एतला बोल लिखी करी श्रीलाहोरि तपानां श्रावकांनई खरतरां भणी पूछिवानइ काजि मूंक्या । लाहोर मध्ये ते बोल किणही चर्च्या नहीं, पूछ्या नहीं, इमजि लिख्या रहया । पछी ते बोल आपणइ हाथि आव्या, परं ते बोल लिखितां द्वेषनइ बाइ घणा असंबद्ध बोल लिख्या छइ, ते बोल न लिखायइ । हिवइ श्रीजिनचन्द्रसूरि युगप्रधानजीनइ आदेशइ, आचार्य श्रीजिनसिंहसूरिजीनई कथनि आपणइ काजि ऊतरसेती ते प्रश्न रा बोल लिखीयइ छीई । " प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक, पृ० ३ २६. युगवरजिनचन्द्राणां वाक्याज्जयसोमनामानः ॥ ५ ॥ मंगलाचरण २७. बृहत्खरतरगच्छनायक-युगप्रधान - जिनचन्द्रसूरिराज्ये आचार्य श्रीजिनसिंहसूरीणामादेशेन लाभपुरे श्रीजयसोमोपाध्यायैः : मुलतानवास्तव्य गोलवच्छागोत्रीय सा० ठाकुरसी लिखित षड्विंशतिप्रश्नानामुत्तराणि वार्त्तिकवृत्त्या लिखितानि । आगमपरम्पराभ्यां यदवगतमतीवमन्दमतिनाऽपि । तल्लिखितमिहास्ति मया, न केवलं दृष्टिरागेण ॥ २ ॥ अथवा गणानुरागो भवति न कस्यानुरागयुक्तस्य । तस्मान्मिथ्यादुः कृतमिहापि मिथ्योदितस्यास्तु ॥ ३ ॥ प्रशस्ति २९. श्रीजिनचन्द्रगुरूणामादेशाल्लाभपुरवरे लिखिता । २८. ३०. जयसोमोपाध्यायैः स्नात्रविधिः पुण्यवृद्धिकृता ॥ १ ॥ मंगलाचरण रस-वारिधि-रस-ससिहरवरसे (१६४६) बीकानेर नयर मन हरसे । श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरुराजै, इह विचार भण्यो हितकाजै ॥ २ ॥ प्रशस्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy