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________________ १२१ टिप्पणियाँ१. वा० क्षेमराज प्रणीत उपदेशसप्ततिका, श्रावकविधि चौपई, इक्षुकार चौपई, पार्श्वनाथ रास आदि छोटी-मोटी २१ कृतियाँ प्राप्त हैं। २. गणि भावराज-शिवसुदर रचित सचित्र स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र लेखन प्रशस्ति पद्य ८२ के आधार से। शिवसुन्दर-उपाध्याय क्षेमराज के उपदेश से सं० १५५५ में श्रीमालवंशीय बहकटागोत्रीय, मांडवदुर्ग के संघनायक जसधीर की भार्या कुमरी ने सचित्र एवं स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र लिखवाकर वाचनाचार्य सोमध्वज को प्रदान की थी। इस कल्पसूत्र की विविध छन्दों में ४२ पद्यों में इतिहास से परिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण लेखन प्रशस्ति सं० १५५५ में उपाध्याय शिवसुन्दर ने लिखी है। इसकी स्वर्णाक्षरी एवं सचित्र ११ पत्रों की प्रति नाहरजी संग्रह, कलकत्ता में प्राप्त है। इस कृति के अतिरिक्त लुम्पकमत निर्लोडन रास, गौतमपृच्छा बालावबोध एवं पार्श्वस्तोत्र भी प्राप्त है। कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ४४२ से ४८९ ५. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ४३७-४३८ कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ४६३ ७. विशेष परिचय के लिये देखें, अगरचंद भंवरलाल नाहटा-लिखित युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ८. मुन्यैकैणांककलाप्रमिते वर्षेऽणहिल्लपुरनगरे। बभासि विजयदसमीदिवसे सत्पुण्यसम्पूर्णे ॥ २० ॥ पुण्यधनसाधुवर्णितमेतज्जयकारणं भूयात् ॥ २॥ १०. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पृ० १९८ ११. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ५२० कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ३१५ की टीका १३. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य पद्य ३५८ से ३६३ की व्याख्या। १४. अकबर साहि सभा महि जेहनउ, सुजस थयउ असमानो जी ॥ १२१८॥ - गुणविनय कृत, धन्नाशालिभद्र चौपई श्री जयसोमगुरुणा साहिसभालब्धविजयकमलानाम्॥ - कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तन-काव्य-टीका-प्रशस्ति पद्य ७ १५. जिनविजयः प्राचीन जैन लेख संग्रह, भा० २, लेखांक १७, 'श्रीजयसोम-महोपाध्याय-श्रीगुणविनय महोपाध्याय-श्री धर्मनिधानोपाध्याय---'लेखांक १९ में भी 'महोपाध्याय' शब्द का प्रयोग है। १६. एतद् द्विपदीव्याख्या लिखनादवलोकनाच्च गुरुवचसा। जयसोमोपाध्यायाः एतत्कृत्योपयोगिनो विहिताः॥१॥ - पौषधविधिप्रकरण टीका प्रशस्ति १७-१८.युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पृ० १९८ १९. श्री जैनचन्द्रसुगुरो राज्ये विजयिनि विपक्षबलजयिनि। क्रमतो नृपविक्रमतः खभूतरसशशिमिते (१६५०) वर्षे ।। ५२६ ॥ साहिश्रीमदकब्बरराज्यदिनादखिललोकसुखहेतोः। अष्टात्रिंशे संवति लाभकृते लाभपुरे नगरे । ५२७ ॥ २०. एवं लद्धजयाणं जिणचंदगुरूण गुरुपमोयाणं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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