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हस्तलिखित सामग्री समय-समय पर प्राप्त होती रही, उसके लिए स्वर्गीय श्री अगरचन्दजी नाहटा और भँवरलालजी नाहटा का अत्यन्त ऋणी हूँ।
• श्री लालभाई दलपतभाई संस्कृति मन्दिर, अहमदाबाद के निदेशक डॉ. जितेन्द्र भाई बी. शाह से सन् १९८९-९० से मेरा प्रगाढ़ सम्बन्ध रहा है । डॉ. जितेन्द्र भाई को जब यह ज्ञात हुआ कि गुणविनयोपाध्याय रचित दमयन्ती कथा चम्पू टीका की प्रेसकॉपी श्री विनयसागरजी ने तैयार कर रखी है। तब उन्होंने मेरे से अनुरोध किया कि इस प्रेसकॉपी को आप हमें भेज दीजिए। हम एल.डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद से प्रकाशित करेंगे। कुछ वर्षों पूर्व इनके अनुरोध पर मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री मुद्रणार्थ भेजी थी किन्तु कार्य बाहुल्य के कारण इस ग्रन्थ के मुद्रण को वे अपने हाथ में न ले सके। अब यह ग्रन्थ पाठकों के सन्मुख प्रस्तुत करने का सारा श्रेय डॉ. जितेन्द्रभाई बी. शाह को ही जाता है । अत: वे भूरि-भूरि साधुवाद के प्रात्र हैं ।
इसके सम्पादन, प्रूफ संशोधन और कम्पोज आदि में जिन-जिन महानुभावों ने सहयोग दिया है, उसके लिए वे सब धन्यवाद के पात्र हैं ।
सन् १९६५ में पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजी के आग्रह पर मैंने इस ग्रन्थ का सम्पादन कार्य प्रारम्भ किया था और यह कार्य सन् १९६७ तक निरन्तर चलता रहा। उस समय में इसके प्रकाशन की वार्ता भी चली किन्तु समय परिपक्व नहीं हुआ था इसीलिए यह ग्रन्थ यथावत् पड़ा था। साहित्य सेवा के प्रति उपेक्षा और स्वयं के कार्य शैथिल्य के कारण यह कार्य ४3 वर्षों तक अधरझूल में लटका रहा। अब इसका समय परिपक्व हो जाने से इस ग्रन्थ को पाठकों के समक्ष रखते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता है ।
अपने जीवनकाल में यह ग्रन्थ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो यह सम्भावना न होने से मैंने इसकी भूमिका सन् २००३ में प्रकाशित की थी । यह प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी के संस्थापक माननीय श्री डी.आर. मेहता और एम. एस. पी. एस. जी. चेरिटेबल ट्रस्ट के मेनेजिंग ट्रस्टी श्री मंजुल जैन के सहयोग से प्रकाशित हुई थी । अतः उनके प्रति भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ । प्रस्तुत पुस्तक में यह भूमिका तनिक परिवर्तन के साथ यथावत् देने का प्रयत्न किया गया है।
आयुष्मान मंजुल - नीलम जैन, पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्द्धमान का जो निरन्तर इस कार्य के प्रति सहयोग रहा है, उसके लिए मैं उन्हें बहुत - बहुत आशीष प्रदान करता हूँ । संस्कृत साहित्य के अनुसंधित्सुओं, अध्यापकों एवं अध्येताओं के लिए टीका सहित यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा । इस भावना के साथ.... ।
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म. विनयसागर
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