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________________ उपसंहार श्री गुणविनयोपाध्याय सर्जित साहित्य का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट प्रतिभासित होता है कि श्री गुणविनयजी जैनागमों और जैन साहित्य के तो प्रौढ़ विद्वान् थे ही, साथ ही वे इनकी (खरतरगच्छ की) परम्परा पर असदारोप/आक्षेप और जिनागम विरुद्ध प्ररूप्रणा करने वालों के लिए दुर्धर्ष वादी थे। व्याकरण, कोष, अलंकार, साहित्यशास्त्र आदि के अप्रतिम विद्वान् थे। धर्माभिलाषी समाज के लिए भी लोक भाषा में विपुल साहित्य का निर्माण कर उनको भी इन्होंने लाभान्वित किया है। स्तोत्र व गीति साहित्य को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि गुणविनय जी हृदय से भक्त कवि भी थे। इन्हीं के आराध्य भगवान् पार्श्वनाथ और दादा युग्म-युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरिजी और युगप्रधान श्री जिनकुशलसूरिजी को नमन कर यह अभिलाषा करता हूँ कि महोपाध्याय गुणविनय के महत्त्वपूर्ण साहित्य पर व्यापक शोध हो और शोध करने वालों के लिए यह लेखन मार्गदर्शक हो। प्रस्तुत सम्पादन त्रिविक्रम भट्ट कृत दमयन्ती कथा चम्पू और दमयन्तीचम्पू एक ही कथाचम्पू के पृथक्पृथक् नाम हैं, कृति एक ही है। मूल की प्रत्येक ज्ञान भण्डार में अनेकों प्रतियाँ प्राप्त होती हैं। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में ही लगभग १८-२० प्रतियाँ हैं। शाखा कार्यालयों में और भी होंगी। भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना में भी ६-७ प्रतियाँ हैं । मैंने इसके मूल पाठ के पाठान्तर लेने में एक हस्तलिखित प्रति और ३ मुद्रित प्रतियों का उपयोग किया है। जिनका परिचय इस प्रकार है: पु. संज्ञक प्रति - यह प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर संग्रहालय की है। हस्तलिखित है। ग्रन्थांक १९६५ है। इस प्रति की साईज २६४१०.५ से.मी. है। पत्र ५४ है। प्रत्येक पत्र में पंक्ति १५-१५ है। अक्षर संख्या ५० के लगभग है। यह प्रति टिप्पण सहित शुद्ध और परिमार्जित प्रति है। इसकी लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है: 'शशिरसवेदशशिप्रमिते वर्षे (१४६१)। बाहुलबहुलपक्षसप्तमीदिने' धिषणवारे प्रतिरियमलेखि श्रीमद् रिणीपुरवरो (रे)। वा० श्रीगुणरङ्गगणि-तच्छिष्य ज्ञानविशालेन।। पं० हेमसोमगणिशिष्य ज्ञाननन्दिपठनार्थं ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः। श्रीस्तात् ।। नि० संज्ञक - निर्णयसागर प्रेस, मुम्बई द्वारा प्रकाशित यह मुद्रित द्वितीय संस्करण था। इसमें चण्डपाल कृत विषमपदप्रकाश व्याख्या भी दी गई थी। इसके सम्पादक पण्डित शिवदत्त थे। सन् १९०३ में यह संस्करण निकला था। निपा० संज्ञक - उक्त निर्णयसागर प्रेस, मुम्बई द्वारा प्रकाशित पुस्तक में जो पाठान्तर दिए गए हैं, उनको यहाँ सम्मिलित किया गया है। इस संस्करण में ९ प्रतियों के आधार से पाठान्तर दिए गए हैं। इस संस्करण में सम्पादक ने दो टीकाओं का उल्लेख भी किया है जिसमें दामोदर कृत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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