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________________ ११५ है। भाषा राजस्थानी गद्य है, श्लोक परिमाण १५५३ है । इसकी १७वीं शताब्दी की लिखित २८ पत्रों की एकमात्र प्रति महिमा भक्ति जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक १००२ है । ४. भाष्यत्रय बालावबोध - चैत्यवन्दन, गुरुवन्दन और प्रत्याख्यान भाष्य पर संस्कृत टीका के अनुसार राजस्थानी गद्य में बालावबोध संज्ञक टीका है। इसकी रचना सं० १६७७ में जैसलमेर में भणसाली गोत्रीय सा० स्थिरपाल (थाहरु सा० ) के आग्रह से हुई है १०४ । प्रशस्ति में लिखा है कि - थिरपाल ने बहुत सा द्रव्य व्यय करके अनेकों सिद्धान्तों की प्रतिलिपियाँ करवाकर भण्डार स्थापित किया और लौद्रवा तीर्थ का उद्धार कर चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई, आदि १०५ । इसकी २७ से ३१ पत्रों की अपूर्ण प्रति गुरु भण्डार, झण्डियाला में प्राप्त है । श्लोक परिमाण २००० है। ५. सम्यक्त्वकुलक बालावबोध - बालावबोध संज्ञक राजस्थानी गद्य में टीका है। इसकी सं० १७५५ में वाचक कनकविलास लिखित ४ पत्रों की प्रति महरचंद ज्ञान भंडार, बीकानेर में प्राप्त है क्रमांक २३३ है । I ६. गुणकित्वषोडशिका - नाम से ही स्पष्ट है कि गुण और कित् पर विवेचना होने से व्याकरण का ग्रन्थ है। मूल के १६ पद्य हैं और स्वयं की ही इस पर टीका है। इसकी एकमात्र प्रति खरतरगच्छ ज्ञान भंडार, जयपुर में प्राप्त है । प्रेस कॉपी मेरे संग्रह में है । ७. अघटकुमार चौपाई – इस चतुष्पदी की रचना सं० १६७४ में आगरा में सम्राट जहांगीर के राज्य में एवं जिनसिंहसूरि के धर्म साम्राज्य में हुई है । १०६ पद्य संख्या २७२ है । इसकी प्रति पादरा ज्ञान भंडार में प्राप्त है । क्रमांक ६२ है । । ८. धर्मबुद्धि सुबुद्धि चौपाई - जैन गूर्जर कविओ भाग २ पृ० १०६९ के अनुसार इसकी प्रति पादरा ज्ञान भंडार में है और अघटकुमार चौपाई के साथ ही लिखित है। इसकी रचना सं० १६९७ राजनगर में हुई है। ९. ललितांग रास - इस रास की १७वीं शताब्दी में लिखित ७ पत्रों की अपूर्ण प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है । क्रमांक ४०१२ है । १०. लुम्पकमतोत्थापक गीत - इसमें लोंकाशाह के मत का खण्डन किया गया है। पद्य ६६ हैं। इसकी प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है । ११. पञ्च-कल्याणक-स्तव बालावबोध - पूर्वाचार्य प्रणीत प्राकृत भाषा में ग्रथित १३ पद्यों के इस स्तोत्र का राजस्थानी गद्य में अर्थ है । इसकी प्रति थाहरूसाह भण्डार, जेसलमेर में प्राप्त है। १२. सप्तस्मरण स्तबक - इसकी अपूर्ण प्रति राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ( २६०३६) में प्राप्त है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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