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________________ ११४ उपाध्याय मतिकीर्त्ति-यु० जिनचन्द्रसूरि स्थापित नन्दियों में कीर्त्ति नंदी का क्रमांक ४०वां है। कीर्त्ति नामांकित सहजकीर्ति द्वारा सं० १६६१ में रचित सुदर्शन चौपाई, पुण्यकीर्त्ति द्वारा सं० १६६२ में रचित पुण्यसार रास, विमलकीर्ति द्वारा सं० १६६५ में रचित यशोधर रास आदि कृतियों के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि 'कीर्ति' नन्दी की स्थापना सं० १६५२-५५ के लगभग हुई होगी! अत: मतिकीर्ति का दीक्षाकाल भी यही है। गुणविनयजी के सहयोगी के रूप में इनका उल्लेख सर्वप्रथम सं० १६७१ में मिलता है। निशीथचूर्णि प्रति का संशोधन गुणविनयजी ने मतिकीर्ति की सहायता से किया था। उल्लेख इस प्रकार है "संवत् १६७१ जैसलमेरदुर्गे श्रीजयसोममहोपाध्यायानां शिष्य श्रीगुणविनयोपाध्यायैः शोधितं स्वशिष्य पं० मतिकीर्त्तिकृतसहायकैर्निशीथचूर्णि द्वितीय खण्ड।" - थाहरुशाह भंडार, जेसलमेर सं० १६७३ में प्रणीत प्रश्रोत्तरमालिका में तथा सं० १६७५ में रचित लुम्पकमततमोदिनकर चौपाई में गुणविनयजी ने मतिकीर्त्ति का सहायक के रूप में उल्लेख किया है। ___मतिकीर्ति-प्रणीत साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट है कि ये जैनागमों के प्रौढ विद्वान् थे, शास्त्रीय चर्चा में भी गुरु गुणविनयजी की तरह अग्रगण्य थे। व्याकरणाशास्त्र के भी ये अच्छे अभ्यासी थे, और राजस्थानी भाषा पर भी इनका अच्छा अधिकार था। इनका साहित्य-सर्जन काल सं० १६७४ से १६९७ के मध्य का है। इनकी प्रणीत १२ कृतियाँ प्राप्त हैं, जो निम्नांकित है१. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र टीका-दशाश्रुतस्कन्धसूत्र छेद ग्रन्थ है। इस पर नियुक्ति, चूर्णि और ब्रह्मर्षि कृत टीका (श्लोक परिमाण ५०००) प्राप्त है। इस टीका के अतिरिक्त विस्तृतार्थ विवेचना युक्त टीका प्राप्त नहीं है। इसी ग्रन्थ पर इन्होंने १८००० श्लोक परिमाण की बृहत् टीका की रचना की है। इसकी रचना सं० १६९७ में१०१ हुई है। इसकी सं० १७३८ में लिखित २८१ पत्रों की एक मात्र प्रति जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लुधियाना में प्राप्त है। टीका महत्त्वपूर्ण एवं प्रकाशन योग्य है। महोपाध्याय समयसुन्दरजी ने अपने कथाकोष में इसका उद्धरण भी दिया है। २. नियुक्तिस्थापन-इसका प्रसिद्ध नाम 'प्रश्नोत्तर-शास्त्र' है। आवश्यक नियुक्ति के विसंवाद पूर्ण वक्तव्यों को १० प्रश्नों के माध्यम से आगमों के प्रमाणों द्वारा सिद्ध एवं सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। इसकी रचना सं० १६७६ में लावण्यकीर्ति के आग्रह पर हुई है१०२ । श्लोक परिमाण १२३१ है। इसकी प्रति महिमाभक्ति जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक १००७ है, पत्र ४८ हैं। ३. २१ प्रश्नोत्तर- इसमें साधु लखमसी कृत २१ प्रश्नों के प्रत्युत्तर दिये गये हैं। उत्तरों में आगमादि ५० ग्रन्थों के प्रमाण उद्धृत किये हैं। इसकी रचना गच्छनायक श्रीजिनराजसूरि के आदेश से हुई है।०३। रचना संवत् नहीं है किन्तु गणि पद का उल्लेख होने से सं० १६७६ के पश्चात् की ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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