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________________ ११२ (५) क्रमांक ६८ जिनचन्द्रसूरि हिंडोलना की रचना १६४५ के पूर्व की है एवं ७०, ७२ और ७३ की रचनायें १६४९-१६५० की हैं। (६) क्रमांक ७४ से ८० जिनराजसूरि के गीत सं० १६७४ के पश्चात् के हैं क्योंकि जिनराजसूरि सं० १६७४ फा०शु० ७ को गणनायक बने थे। (७) क्रमांक ३८, ३९ का रचना समय १६७५ का है क्योंकि लौद्रवा में सहस्रफणा पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा सं० १६७५ वै०शु० १३ को हुई थी। कवि की मुनि पद वाली प्रारम्भिक रचनाओं में, शब्द चयन एवं भाव सौष्ठव की दृष्टि से जीव प्रतिबोध गीत नामक ८६वीं लघुकृति उदाहरणार्थ प्रस्तुत है जिउरा करि निरंजन ध्यान। देखि अपनउ अथिर जीवित, म हरि परहा परान॥१॥ राज रमणि विलास परिजन, देखि भयउ हयरान। एह जगमहि सबही चंचल, कइसइ करत गुमान॥ २॥ माइ माइ कुन सगाइ. कहां राचइ आयान। जानि जगि नही कोउ किसकउ, अइसइ चिति करि ग्यान एह अपनउ इहु विरानउ, सबही कउ पीहीचान। वदति मुनि गुणविनय अपनइ, भावि भजि भगवान॥ ४॥ लघु कृतियों के अन्तर्गत प्राञ्जल रचनाओं में भारती स्तोत्र के दो पद्य एवं यमकालंकारश्लेषालंकारमय शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र के दो पद्य द्रष्टव्य हैं अतिनिर्मलरोचिर्मण्डलकुण्डलमण्डितगण्डां गुणमाला, दधतीं हृदि मालामिव शुभमालामपहृतजालां शब्दालाम्। विलसन्सुरमण्डल-मुख्याखण्डल-नम्या खण्डग्लौभालामभिमतमतिदात्री महिमापात्रीं नौमि सवित्री बहुरूपाम्॥१॥ ललितामल-करतल-लालित लोहित-चरणा चंचलसितपक्षां, मदबन्धुर-सिन्धुर-रमणीबन्धुर-मन्थरगमनां सितपक्षाम्। विदलितदुरितां लाङ्कालितकाला कोमलतालां गुणपक्षामभिमतमतिदात्री महिमापात्रीं नौमि सवित्री बहुरूपाम्॥ २॥-भारती स्तोत्र वितनुते तनुते तनुतेश्वर ! प्रशमभास्वरभास्वरभाश्वर ! विमलमालय लक्षणलक्षण ! प्रियमलं यमलं यमलम्पदम्॥१॥ रचितमालतमालतमालभ ! स्तुतमहेशमहेशमहेशद ! सुरमुदारमुदारमदायुत ! द्रुतमुदारमुदारमुदारद ! ॥२॥ -शंखेश्वर-पार्श्वनाथ स्तोत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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