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________________ १११ १०१. बूंदीपुरी महावीर गीतम् जगतगुरु बूंदीपुरी प्रभु जागइ १०२. गौतमस्वामी गीतम् गौतमलब्धिनिधान काउ री १०३. जिनकुशलसूरि गीतम् दादा पूरि हो मन आस १०४. ८ राउद्रहपुर-जिनकुशलसूरि गीतम् श्रीजिनकुसलसूरीसरु १०५. कीर्तिरत्नसूरि गीतम् श्रीकीर्तिरतनसूरि के पय० १०६. ९०पाटण जिनकुशलसूरिंगीतम् जीहो त्रिभुवन मइ जस० १०७. नवानगर जिनकुशलसूरिगीतम् जीहो महीयलि महिमा० १०८. कंसारी पार्श्वनाथ स्तवन परतिख पास जुहारियइ वाचक वाचक वाचक १४ १. शान्तिनाथ गीतम्१ संतिकर सांति जिन सेवियइ २. मुनिसुव्रत जिन स्तवन २ १५ जोधपुर १६५९ ३. नेमिनाथ गीतम् मेरउ नेमि नगीनउ ४. गौडी पार्श्वनाथ स्तवन सयल सुख संपदा सांमि० ५. फलवर्द्धि पार्श्वनाथ स्तवन श्रीफलवधिपुर सिर तिलउ ए ६. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन पणमु पास संखेसरइए ७. जिनकुशलसूरि गीतम् चलउ दादा कइ दरबारइ ८. वाणीसुधा सवैया मुहवंग मृदंग उपंग कर इन लघुकृतियों में कवि ने केवल ६ कृतियों के अन्त में रचना संवत् दिया है। यथा-कृति क्रमांक ९-र०सं० १६४४, क्रमांक २९-र०सं० १६५७, क्रमांक ८५-र०सं० १६६०, क्रमांक १०र०सं० १६६३, क्रमांक ५-र०सं० १६७२ और क्रमांक ३१-र०सं० १६७६ । कतिपय कृतियों के अन्त में नाम के साथ मुनि, गणि, वाचक, पाठक पद का प्रयोग होने से एवं तत्समय के प्रसंगों के आधार से निम्नांकित कृतियों का आनुमानिक रचना समय निर्धारित किया जा सकता है, जो इस प्रकार है(१) लघु कृति क्रमांक - ३५, ३६ एवं ८६ में 'मुनि' पद का प्रयोग होने से ये रचनायें सं० १६२५ से १६४३ के मध्य की हैं। (२) क्रमांक - ९, १२, १९, २०, ५१, ६२, ६९, ७१ में गणि पद का प्रयोग होने से १६४४ से १६४९ के मध्य की हैं। (३) क्रमांक - २९, ३२, ३३, ४५, ९१, ९२, ९४, ९८ में वाचनाचार्य एवं वाचक पद का प्रयोग होने से १६५० से १६६३ के मध्यकाल की हैं। (४) क्रमांक - १०, १५, १६, २६, २७, ३०, ३१, ३४, ३७, ४९, ५९, ६४, ६७, ७५, ८१, ८२, ८८, ९५, ९६ में पाठक एवं उपाध्याय पद का प्रयोग होने से वि०सं० १६६३ के पश्चात् की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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