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की प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है । क्रमांक ३७६४ है । इस प्रति के प्रारम्भ के दो पत्र नहीं हैं।
३१. जम्बूस्वामी चौपाई - अन्तिम केवली जम्बूस्वामी के कथानक की रचना सं० १६७० श्रावण शुक्ला १० शुक्रवार अनुराधा नक्षत्र मं, बाडमेर स्थित भगवान् सुमतिनाथ एवं दादा जिनकुशलसूरि के प्रसाद से युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य में हुई है। ढाल ४९ हैं, पद्य १००९ हैं । इसकी १७वीं शताब्दी की लिखित ३३ पत्रों (६४ - ९६ ) की प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक ३६६८ है ।
३२. कलावती चौपाई – इसकी रचना सं० १६७३ श्रावण शुक्ला ९ को सांगानेर में भगवान् पद्मप्रभ एवं दादा जिनकुशलसूरि के प्रसाद से ६ आचार्य जिनसिंहसूरि के साम्राज्य में हुई है। पद्य संख्या २४२ हैं । जैन गुर्जर कविओ भाग २, पृ० ८३७ के अनुसार इसकी प्रति पादरा के भंडार में नं० ६२ पर प्राप्त है।
३३. मूलदेव चौपाई – इसकी रचना सं० १६७३ ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी शुक्रवार को सांगानेर में हुई है७७। पद्य संख्या १७० है । १७वीं शताब्दी में जीवकीर्त्ति गणि द्वारा सुभटपुर में लिखित ७ पत्रों की प्रति मुकनचंदजी संग्रह में यति जयकरण जी, बीकानेर में प्राप्त है। प्रेसकॉपी श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है।
३४. धन्नाशालिभद्र चौपाई - दान धर्म के माहात्म्य पर इस चतुष्पदी की रचना सं० १६७४ कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को जहांगीर के शासन काल में, महोपाध्याय जयसोम के आशीष से आगरा नगर में हुई है।७८ इस समय गच्छनायक जिनसिंहसूरि का धर्मसाम्राज्य था जिन्हें सम्राट् जहांगीर ने युगप्रधान पद प्रदान किया था। आगरा निवासी श्रीमालवंशीय, पापड गोत्रीय वेणीदास का पौत्र, जिणदास का पुत्र मदनसिंह के आग्रह से एवं श्रीसंघ की उमंग भरी प्रेरणा से कवि इसकी रचना में प्रवृत्त हुआ था ।
इसकी पूर्णाहुति कार्तिकी पूर्णिमा को आगरा नगर स्थित भगवान् विमलनाथ एवं दादाद्वय के सान्निध्य से हुई थी और मार्गशीर्ष १० को श्रीसंघ के सन्मुख यह प्रकट की गई थी। इसका श्लोक परिमाण २००० है ।
इसकी ४८ पत्रों की प्रति महिमा भक्ति ज्ञान भण्डार, बीकानेर में प्राप्त है । क्रमांक ५९३ है । प्रत्येक पत्र स्वयं गुणविनयजी द्वारा संशोधित एवं परिवर्द्धित है।
३५. अगडदत्त रास — इसका केवल एक पत्र श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है। मंगलाचरण के ९ पद्य जैन गूर्जर कविओ भा० २, पृ० ८३९ में मुद्रित हैं। मंगलाचरण में भगवान् सुमतिनाथ, दादाद्वय, गुरुजयसोम को नमस्कार कर, भावनिद्रा त्याग के माहात्म्य पर अगडदत्त चरित्र कहने की प्रतिज्ञा की है ।
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