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२६. बारह व्रत रास - संवत् १६५५ में जीउ नाम की श्राविका ने गुणविनयजी से बारह व्रत ग्रहण किये थे। उसी के निमित्त कवि ने ५६ पद्यों में इसकी रचना की है। इसकी प्रति संघ भण्डार, पाटण में है। आद्यन्त प्रशस्ति जैन गुर्जर कविओं भा० २ पृ० ८२९ पर प्रकाशित है।
२७. ऋषिदत्ता चौपाई - शीलव्रत माहात्म्य पर ऋषिदत्ता कथानक की रचना सं० १६६३ चैत्र शुक्ला ९ रविवार रवियोग को खंभात में जहाँ शिवा सोमजी ने अनेकों बिम्ब भराये हैं ऐसे स्तम्भनक पार्श्वनाथ के प्रसाद में, जिनचन्द्रसूरि एवं जिनसिंहसूरि के साम्राज्य में, गुरु जयसोम की आज्ञा से७१ हुई है। गाथा (पद्य) २६८ है । सं० १६६३ नवानगर (जामनगर) में लिखित ८ पत्रों की प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है, क्रमांक ३५१५ है । इस प्रति में पत्रांक ३, ४ एवं ७ स्वयं गुणविनयजी लिखित हैं।
२८. जीवस्वरूप चौपाई - जीव का मूल स्वरूप क्या है, वैभाविक परिणति प्राप्त कर किस प्रकार भव समुद्र में परिभ्रमण करता रहता है, शुद्ध दशा प्राप्त करने के लिये क्या प्रयत्न करने चाहिये, आदि का वर्णन विस्तार के साथ इस चतुष्पदिका में किया गया है। वस्तुतः कृति कथाचौपई न होकर, सैद्धान्तिक एवं औपदेशिक चौपई है। इसकी रचना सं० १६६४ में राजनगर (अहमदाबाद) में हुई है। पद्य २४७ है, श्लोक परिमाण ४०० हैं । उदाहरणार्थ ३ पद्य प्रस्तुत हैं
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मत तिणमइ जिउ जाई पडउ, ते छड़ वास अतहि संकडउ ।
भू जल जलण पवण पत्तेय, वण निगोह बायर ना भेय ॥ २३ ॥
सागर सत्तरि कोडाकोडि, तिहां हुं भम्यउ सुणउ रिण छोडि ।
बि ति चउरिंदि पणइ जिउ जाणि, वच्छर संख सहस्त्र वखाणि ॥ २४॥
बायर पज्ज जेह एगिंदि, भणिया जे वलि बि ति चउरिंदि ।
तेहनी काय स्थिति संभलउ, करमइ हूइ भूंडा सांफलउ ॥ २५ ॥
इसकी १७वीं शताब्दी की १० पत्रों की प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है 1 क्रमांक ८५५७ है। इस प्रति का प्रथम पत्र नहीं है । इसकी दूसरी प्रति भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्ट्रीटयूट, पूना में प्राप्त है
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२९. गुणसुन्दरी चतुष्पदिका - शीलव्रत के माहात्म्य पर सती गुणसुन्दरी का कथानक है। इसकी रचना सं० १६६५ में नवानगर में हुई है ३ । पद्य १४० हैं । इसकी सं० १७४३ क़ी लिखित ७ पत्रों की प्रति श्रीपूज्य जिनचारित्रसूरि संग्रह, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान शाखा कार्यालय, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक २६६३ है ।
३०. नल-दमयन्ती प्रबन्ध - नल दमयन्ती के प्रसिद्ध कथानक की रचना सं० १६६५ आश्विन कृष्णा ६ सोमवार, मृगशिरा नक्षत्र, सिद्धि - रवियोग में नवानगर ४ में हुई है । पद्य ३५० हैं, श्लोक परिमाण ५२१ है । इसकी १७वीं शताब्दी में मालपुरा में जीवकीर्त्ति गणि लिखित १४ पत्रों
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