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________________ १०२ में हुई है।६६ राजस्थानी गद्य के उदाहरण स्वरूप पद्य ३० वें का बालावबोध प्रस्तुत है "अहो देव-स्वामी एह माहरी यात्रा एहिज स्नात्र महोत्सव जे तुम्हारउ अनलीक - सत्य गुणग्रहण कहतां स्तवन कर्यओ। पुणि केहवउ छइ स्तवन! मुनिजननइं - यतिजननइं अनिषिद्ध कहतां निषेध्यउ नथी। बीजइ पापी राजादिकना गुणग्रहण यतीनई निषेध्या छइ, परं सामी ताहरा गुणग्रहण साधुनइ निषेध्या नथी। एहवई थकइ प्रसन्न थाओ। अहो श्री पार्श्वनाथ! स्तम्भकपुरस्थित! एहवइ प्रकारइ मुनिवर - साधुनई विषइ श्रेष्ठ श्री अभयदेव नवांगीवृत्तिनउ करणहार वीनवइ-आंपणी वीनती करइ। अहो अनिन्दित! त्रिलोक लोकनइ विषइ श्लाघा प्राप्त, ए श्री पार्श्वनाथ नउ विशेषण॥ ३०॥" __इसकी १७वीं शताब्दी में लिखित पत्रांक ६ से १३ की अपूर्ण प्रति रामचन्द्र जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर क्रमांक ११९ में प्राप्त है। २०. कल्पसूत्र बालावबोध-इस बालावबोध संज्ञक राजस्थानी टीका के कई पत्र स्वयं गुणविनयजी द्वारा लिखित रायबहादुर श्री बद्रीदासजी संग्रह, कलकत्ता में प्राप्त है। 'साधु समाचारी' जो कि इस कल्पसूत्र का तीसरा अधिकार है, इसका बालावबोध भी स्वयं (गुणविनयजी) लिखित १९ पत्रों की प्रति श्रीपूज्य श्रीजिनचारित्रसूरि संग्रह-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय बीकानेर क्रमांक २६७ पर प्राप्त है। इस प्रति का अन्तिम पत्र प्राप्त न होने से इसका रचना समय निर्धारित नहीं किया जा सकता। मंगलाचरण में पाठक (उपाध्याय) पद का उल्लेख होने से इस बालावबोध की रचना १६६५ के पश्चात् की सम्भव है। साधु समाचारी का मंगलाचरण इस प्रकार "श्रीजयसोमगुरूणां शिष्यैर्गुणविनयपाठकैः। सामाचारी साधोर्विवियते वार्त्तया किञ्चित्॥१॥ जीयइ समाचारी रूप महानिधान प्रगट करिवा निमित्ति मंगल रूप श्रीवधमान स्वामिना छ कल्याणक कया। तदनन्तर श्रीपार्श्वनाथ, श्रीनेमिनाथ, तदन्तरालकाल, ऋषभदेव चरित, श्रीस्थविर भगवंत नामोच्चार कीया। ते हिव यति री अट्ठावीस समाचारी कहीयइ छ।।" २१. भक्तामर स्तोत्र बालावबोध रूप अवचूरि-श्रीमानतुंगसूरि प्रणीत वसन्ततिलका छन्द में पद्य ४४ हैं। इस पर यह विस्तृत बालावबोध-अनुवाद न होकर संक्षिप्त गद्यानुवाद है इसलिये इसे बालावबोध रूप अवचूरि की संज्ञा दी है। भक्तामरस्तवस्यावचूरिरेष विरच्यते नव्या। श्रीगुणविनर्यैबालावबोधरूपा परस्यार्थे । भाषा में संक्षिप्त अनुवाद को स्तबक-टब्बा कहते हैं। प्रशस्ति में 'श्रीजयसोम-महोपाध्याय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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