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१४. शीलोपदेशमाला लघुवृत्ति - मूल ग्रन्थकार जयकीर्त्तिसूरि हैं । भाषा प्राकृत है। इस पर यह लघुवृत्ति है । इस लघुवृत्ति की प्रति आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर में प्राप्त है ।
१५. भावविवेचनम् — इस लघुवृत्ति में भावों पर विवेचना की गई है और पाक्षिकसूत्र वृत्ति आधार से कथानक भी दिये गये हैं। साथ ही 'तवसुत्तविगयपूया' इस पद्य की व्याख्या करते हु उपदेशमाला, जीवानुशासनवृत्ति एवं तत्त्वार्थसूत्र वृत्ति के आधार से ४ कथायें भी दी हैं । भावविवेचना के अन्त में लेखक ने लिखा है
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'तत उपदिश्यते श्रीयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनधर्मरतं लब्ध्वा एकाग्रं मनसं कृत्वा तद्भावनायां प्रावर्त्तितव्यं यथोत्तरं मङ्गलमाला प्रवर्तते । श्रीगुणविनयोपाध्यायैर्विनिर्मितोऽयं भावो लेशतः । "
इसमें उपाध्याय पद का उल्लेख होने से यह रचना सं० १६६३ के पश्चात् की ही है। इसकी जीवकीर्त्तिगणि लिखित १७वीं शताब्दी की ४ पत्रों की प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर क्रमांक २५८७ में प्राप्त है।
४. राजस्थानी गद्य में बालावबोध
१६. बृहत्संग्रहणी बालावबोध - यह ग्रन्थ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण रचित प्राकृत भाषा में है । इस पर राजस्थानी गद्य में वार्त्तारूप में बालावबोध संज्ञक टीका की रचना की गई है। मंगलाचरण के पाँचवें पद्य में लिखा है
त्रैलोक्यदीपिकाया व्याख्यां वार्त्ताविनोदविख्याताम् । वितनोमि संग्रहिण्या श्रीमद्गुणविनयगणिरेषः ॥ ५५ ॥
इसकी एकमात्र अपूर्ण प्रति अनन्तनाथ जिनालय भण्डार, बम्बई में प्राप्त है ।
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१७. आदिनाथ स्तवन बालावबोध — श्रीविजयतिलक रचित यह स्तवन अपभ्रंश भाषा में है । विस्तार से राजस्थानी भाषा में इसका बालावबोध अर्थात् भाषा टीका है।
१८ णमोत्थुणं बालाबोध - इसका दूसरा नाम प्रणिपात दण्डक भी है। इस पर यह भाषा में बालावबोध संज्ञक टीका है। इसकी १८ वीं शती की लिखित एक पत्र की अपूर्ण प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है, जिसका क्रमांक ८२५३ है । इसका मंगलाचरण निम्न है
प्रणिपादण्डकवर- व्याख्या बालावबोधरूपेयम् ।
क्रियते गणिगुणविनयैः श्रेयोर्थं वाचनाचार्यैः ॥१॥
इसमें वाचनाचार्य का प्रयोग होने से इसकी रचना १६४९ के पश्चात् की है ।
१९. जयतिहुअणस्तोत्र बालावबोध - नवांगवृतिकारक श्री अभयदेवसूरि रचित यह स्तोत्र अपभ्रंश भाषा में है । पद्य ३० हैं । इस बालावबोध की रचना सं० १६५० के लगभग लाहोर
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