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से आकर्षित होकर इनका पार्श्व नहीं छोड़ती है।" पद्य द्रष्टव्य है
यत्पाद्यं मुमुचुर्न चाद्भुतगुणैः शोभारती-भारती, यत्कीर्त्तिः सकलामिलामलमयासीन्निर्मलापि प्रिया। स्वैरं यत प्रमदा स्वभावसुलभं स्त्रीचापलं को जनः
शक्तो वारयितुं भवेद् भुवि भवानीशोपमाधार्यापि॥ इस टीका की प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है जिस का क्रमांक नं० ५४०५ है। ४ पत्र हैं। १६वीं शताब्दी की लिखित है।
११. इन्द्रियपराजयशतक टीका-पूर्वाचार्य प्रणीत यह शतक प्राकृत भाषा में है। इस टीका की रचना सं० १६६४ में हुई है। जिन रत्नकोश पृ० ४० के अनुसार इस टीका की प्रतियाँ प्र० कान्तिविजयजी संग्रह, बड़ोदा आदि में प्राप्त है। सन्मार्ग प्रकाशन, अहमदाबाद से प्रकाशित हो चूकी हैं ।
१२. लघु अजितशान्तिस्तव टीका-इस स्तोत्र के मूल प्रणेता आचार्य जिनवल्लभसूरि हैं। प्राकृत भाषा में १७ पद्य हैं। इस पर टीका की रचना कब हुई? अन्वेषणीय है। जैन ग्रन्थावली पृ० २८८ के आधार से इसकी प्रति पाटण के भंडार नं० ५ में प्राप्त है।
१३. ऋषिमण्डल प्रकरण अवचूरि (टीका)- यह प्रकरण ऋषिमण्डल-सूत्र के नाम से प्रसिद्ध है। मूल प्राकृत भाषा में है और मूलकार हैं धर्मघोषसूरि । प्रशस्ति में रचना सम्वत् न होने से इसकी रचना कब हुई, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, किन्तु 'श्रीजयसोमोपाध्यायशिष्यवाचनाचार्यगुणविनयैः' स्वयं के लिये 'वाचनाचार्य' का उल्लेख होने से निश्चित है कि उपाध्याय पद प्राप्ति पूर्व सं० १६४५ से १६६३ के मध्य में इसकी रचना हुई है। इस प्रकरण की बृहद्वृत्ति, लघुवृत्ति६४ और भुवनतुंगसूरि६५ रचित टीकाओं का अवलोकन कर इस अवचूरि की रचना की गई है। कहीं-कहीं पर महर्षियों की संक्षेप में कथा अवश्य दी है। इस प्रकरण में सनत्कुमारचक्रवर्ती का उल्लेख न होने से दो पद्य स्वोपज्ञ टीका सहित प्रक्षेप रूप से सम्मिलित कर दिये हैं। "श्रीसनत्कुमारचक्रिणोऽत्रान्तरे प्रक्षेपरूपे स्वोपज्ञे इमे वृत्तगाथे पठितव्येसरूवहाणिं सुणिऊण माया, दियाणनाओ य सणंकुमारो। छक्खंडसामिच्चमुविक्ख दिक्खं, गिण्हित्तु पत्तो स सणंकुमारे॥११॥ वाससयसत्त सहिआ लद्धिसमिद्धेण वेयणा जेण। उग्गाणं रोगाणं तं नमिमो मुणिवरं णिच्चं ॥१२॥"
अवचूरि विशद एवं श्रेष्ठ है। इसकी १७वीं शताब्दी में यु० जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य श्रीधर्मनिधानोपाध्याय के शिष्य श्रीधर्मकीर्तिगणि लिखित १९ पत्रों की प्रति भुवनभक्ति जैन ज्ञानभंडार, बीकानेर क्रमांक ३३ में प्राप्त है।
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